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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १६६] [अष्टपाहुड अर्थ:--विषभक्षणसे, वेदना की पीड़ा के निमित्तसे, रक्त अर्थात् रुधिरके क्षय से, भयसे, शस्त्रके घात से, संक्लेश परिणामसे, आहार तथा श्वासके निरोधसे इन कारणोंसे आयुका क्षय होता है। हिम अर्थात् शीत पालेसे , अग्निसे, जलसे, बड़े पर्वत पर चढ़कर पड़नेसे, बड़े वृक्ष पर चढ़कर गिरनेसे, शरीरका भंग होनेसे, रस अर्थात् पारा आदिकी विद्या उसके संयोग से धारण करके भक्षण करे इससे, और अन्याय कार्य, चोरी, व्यभिचार आदिके निमित्तसे ---इसप्रकार अनेकप्रकारके कारणोंसे आयुका व्युच्छेद (नाश) होकर कुमरण होता है। इसलिये कहते हैं कि हे मित्र! इसप्रकार तिर्यंच मनुष्य जन्ममें बहुतकाल बहुतबार उत्पन्न होकर अपमृत्यु अर्थात् कुमरण सम्बन्धी तीव्र महादुःखको प्राप्त हुआ। भावार्थ:--इस लोकमें प्राणीकी आयु (जहाँ सोपक्रम आयु बंधी है उसी नियम के अनुसार) तिर्यंच-मनुष्य पर्यायमें अनेक कारणोंसे छिदती है, इससे कुमरण होता है। इससे मरते समय तीव्र दुःख होता है तथा खोटे परिणामोंसे मरण कर फिर दुर्गतिही में पड़ता है; इसप्रकार यह जीव संसार में महादुःख पाता है। इसलिये आचार्य दयालु होकर बारबार दिखाते हैं और संसारसे मुक्त होनेका उपदेश करते हैं, इसप्रकार जानना चाहिये।। २५-२६-२७।। आगे निगोद के दुःख को कहते हैं:--- छत्तीस तिणि सया छावट्ठिसहस्सवार मरणाणि। अतोमुहुत्तममज्झे पत्तो सि निगोयवासम्मि।।२८।। षत्रिंशत त्रीणि शतानि षट्षष्टि सहस्रवारमरणानि। अन्तर्मुहूर्तमध्ये प्राप्तोऽसि निकोतवासे।। २८ ।। अर्थ:--हे आत्मन! तू निगोद के वास में एक अंतर्मुहूर्त में छियासठ हजार तीनसौ छत्तीस बार मरणको प्राप्त हुआ। छासठ हुर त्रिशत अधिक छत्रीश तें मरणो कर्यां, अंतर्मुहूर्त प्रमाण काल विषे निगोदनिवासमां। २८ । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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