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[अष्टपाहुड आगे आचार्य इस बोधपाहुड का वर्णन अपनी बुद्धि कल्पित नहीं है, किन्तु पूर्वाचार्यों के अनुसार कहा है इसप्रकार कहते हैं:--
सद्दविचारो हूओ भासासुत्तेसु जं जिणे कहियं। सो तह कह्यिं णायं सीसेण य भद्दबाहुस्स।।६१।।
शब्दविकारो भूतः भाषासूत्रेषु यज्जिनेन कथितम्। तत् तथा कथितं ज्ञातं शिष्येण च भद्रबाहोः।। ६१।।
अर्थ:--शब्दके विकार से उत्पन्न हुए इसप्रकार अक्षररूप परिणाम से भाषा सूत्रों में जिनदेवने कहा, वही श्रवण में आक्षररूप आया और जैसा जिनदेव ने कहा वैसा ही परम्परासे भद्रबाहुनामक पंचम श्रुतकेवली ने जाना और अपने शिष्य विशाखाचायर आदि को कहा। वह उन्होंने जाना वही अर्थरूप विशाखाचार्य की परम्परा से चला आया। वही अर्थ आचार्य कहते हैं, हमने कहा है, वह हमारी बुद्धि से कल्पित करके नहीं कहा गया है, इसप्रकार अभिप्राय है ।। ६१।।
२ विशाखाचार्य---मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त के दीक्षाकाल में दिया हुआ नाम है।
जिनकथन भाषासूत्रमय शाब्दिक-विकाररूपे थy; ते जाण्यु शिष्ये भद्रबाहु तणा अने अम ज कह्यु। ६१।
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