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विषय तीन भुवन संबन्धी समस्त जल पिया तो भी प्यास शांत न हुई अनंत भव सागरमें अनेक शरीर धारण किये जिनका कि प्रमाण भी नहीं विषादि द्वारा मरण कर अनेकबार अपमृत्युजन्य तीव्र दुःख पाये निगोद के दुःखोंका वर्णन क्षुद्र भवोंका कथन रत्नत्रय धारण करनेका उपदेश रत्नत्रयका सामान्य लक्षण जन्ममरण नाशक सुमरण का उपदेश टीकाकर वर्णित १७ सुमरणोंसे भेद तथा सर्व लक्षण द्रव्य श्रमण का त्रिलोकी में ऐसा कोई भी परमाणुमात्र क्षेत्र नहीं जहाँ की जन्म मरण को प्राप्त नहीं हुआ। भावलिंग के बिना बाह्य जिनलिंग प्राप्तिमें भी अनंतकाल दुःख सहे पुद्गलकी प्रधानतासे भ्रमण क्षेत्रकी प्रधानतासे भ्रमण और शरीरके राग प्रमाणकी अपेक्षासे दुःखका वर्णन अपवित्र गर्भ-निवासकी अपेक्षा दुःख का वर्णन बाल्य अवस्था संबंधी वर्णन शरीरसम्बन्धी अशुत्विका विचार कुटुम्बसे छूटना वास्तविक छूटना नहीं, किन्तु भावसे छूटना ही वास्तविक छूटना है मुनि बाहुबलीजी के समान भावशुद्धिके बिना बहुत काल पर्यंत सिद्धि नहीं हुई मुनि पिंगलका उदाहरण तथा टीकाकार वर्णित कथा वशिष्ट मुनिका उदाहरण और कथा भावके बिना चौरासी योनियोंमें भ्रमण बाहु मुनिका दृष्टांत और कथा द्वीपायन मुनिका उदाहरण और कथा भावशुद्धिकी सिद्धिमें शिवकुमार मुनिका दृष्टांत तथा कथा भावशुद्धि बिना विद्वत्ता भी कार्यकारी नहीं उसमें उदाहरण अभव्यसेन मुनि विद्वत्ता बिना भी भावशुद्धि कार्यकारिणी है उसका दृष्टांत शिवभूती तथा शिवभूतीकी कथा नग्नत्वकी सार्थकता भावसे ही है भावके बिना कोरा नग्नत्व कार्यकारी नहीं भावलिंग का लक्षण भावलिंगी के परिणामोंका वर्णन मोक्षकी इच्छामें भावशुद्ध आत्मा का चितवन आत्म-चितवन भी निजभाव सहित कार्यकारी है सर्वज्ञ प्रतिपादित जीवका स्वरूप जिसने जीवका अस्तित्व अंगीकार किया है उसीके सिद्धि है जीवका स्वरूप वचनगम्य न होनेपर भी अनुभवगम्य है पंचप्रकार ज्ञानभी भावनाका फल है
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