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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १३०] [अष्टपाहुड उसी समय मनःपर्यय ज्ञान उत्पन्न हो जाता है। फिर कुछ समय व्यतीत होने पर तपके बलसे घातिकर्म की प्रकृति ४७ तथा अघाति कर्मप्रकृति १६---इसप्रकार त्रेसठ प्रकृति का सत्तामें से नाश कर केवलज्ञान उत्पन्न कर अनन्तचतुष्टयरूप होकर क्षुधादिक दोषोंसे रहित अरहंत होते हैं। फिर इन्द्र आकर समवसरणकी रचना करता है सो आगमोक्त अनेक शोभा सहित मणि-सुवर्णमयी कोट , खाई, वेदी चारों दिशाओंमें चार दरवाजे, मानस्तंभ, नाट्यशाला, वन आदि अनेक रचना करता है। उसके बीच सभामण्डपमें बारह सभाएँ उनमें मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका, देव, देवी, तिर्यंच बैठते हैं। प्रभुके अनेक अतिशय प्रकट होते हैं। सभामण्डपके बीच तीन पीठपर गंधकुटीके बीच सिंहासन पर कमलके ऊपर अंतरीक्ष प्रभु बिराजते हैं और आठ प्रातिहार्य युक्त होते हैं। वाणी खिरती है, उसको सुनकर गणधर द्वादशाग शास्त्र रचते हैं। ऐसे केवलकल्याणका उत्सव इन्द्र करता है। फिर प्रभु विहार करते हैं। उसका बड़ा उत्सव देव करते हैं। कुछ समय बाद आयु के दिन थोड़े रहने पर योगनिरोध कर अधातिकर्मका नाशकर मुक्ति पधारते हैं, तत्पश्चात् शरीरका अग्नि-संस्कार कर इन्द्र उत्सवसहित निर्वाण कल्याणक' महोत्सव करता है। इसप्रकार तीर्थंकर पंच कल्याणककी पूजा प्राप्त कर, अरहंत होकर निर्वाणको प्राप्त होते हैं ऐसा जानना।। ४१।। आगे (११) - प्रवज्या निरूपण करते हैं, उसको दीक्षा कहते हैं। प्रथम दीक्षा ही के योग्य स्थान विशेष को तथा दीक्षासहित मुनि जहाँ तिष्ठते हैं, उसका स्वरूप कहते हैं:-- सुण्णहरे तरुहितु उज्जाणे तह मसाणवासे वा। गिरिगुह गिरिसिहरे वा भीमवणे अहव वसिते वा।। ४२।। 'सवसासत्तं तित्थं वचचइदालत्तयं च वुत्तेहिं। जिणभवणं अह वेज्झं जिणमग्गे जिणवरा विति।।४३।। पंचमहव्वयजुत्ता पंचिंदियसंजया णिरावेक्खा। सज्झायझाणजुत्ता मुणिवरवसहा णिइच्छन्ति।। ४४।। १ सं० प्रति में 'सवसा“सतं' ऐसे दो पद किये हैं जिनकी सं० सववशा 'सत्त्वं' लिखा है। २ 'वचचइदालत्तयं' इसके भी दो ही पद किये हैं ' वचः ' 'चैत्यालयं । Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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