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________________ बोधपाहुड ] Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates णामे ठवणे हि य संदव्वे भावे हि सगुणपज्जाया। चउणागदि संपदिमें भावा भावंति अरहंतं ।। २८ ।। नाम्नि संस्थापनायां हि च संद्रव्ये भावे च सगुणपर्यायाः २ । च्यवनमागतिः संपत् इमे भावा भावयंति अर्हन्तम् ।। २८ ।। अर्थः-- -- नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव ये चार भाव अर्थात् पदार्थ हैं ये अरहंत को बतलाते हैं और सगुणपर्यायाः अर्थात् अरहंत के गुण- पर्यायों सहित तथा चउणा अर्थात् च्यवण और आगति व सम्पदा ऐसे ये भाव अरहंत को बतलाते हैं । [ ११९ भावार्थ:--अरहंत शब्द से यद्यपि सामान्य अपेक्षा केवलज्ञानी हों वे सब ही अरहंत हैं तो भी यहाँ तीर्थंकर पदकी प्रधानता से कथन करते हैं इसलिये नामादिकसे बतलाना कहा। लोकव्यवहार में नाम आदि की प्रवृत्ति इसप्रकार है -- जो जिस वस्तु का नाम हो वैसा गुण न हो उसको नामनिक्षेप कहते हैं। जिस वस्तुका जैसा आकार हो उस आकार की काष्ठपाषाणादिककी मूर्ति बनाकर उसका संकल्प करे उसको स्थापना कहते हैं। जिस वस्तुकी पहली अवस्था हो उसहीको आगे की अवस्था प्रधान करके कहें उसको द्रव्य कहते हैं। वर्तमान में जो अवस्था हो उसको भाव कहते हैं । ऐसे चार निक्षेपकी प्रवृत्ति है । उसका कथन शास्त्र में भी लोगोंको समझाने के लिये किया है। जो निक्षेप विधान द्वारा नाम, स्थापना, द्रव्यको भाव न समझे; नाम को नाम समझे, स्थापना को स्थापना समझे, द्रव्य को द्रव्य समझे, भाव को भाव समझे, अन्य को अन्य समझे, अन्यथा तो 'व्यभिचार' नामक दोष आता है। उसे दूर करने के लिये लोगों को यथार्थ समझने को शास्त्र में कथन है । किन्तु यहाँ वैसा निक्षेपका कथन नहीं समझना। वहाँ तो निश्चय की प्रधानता से कथन है सो जैसा अरहंतका नाम है वैसा ही गुण सहित नाम जानना, जैसी उनकी देह सहित मूर्ति है वही स्थापना जानना, जैसा उनका द्रव्य है वैसा द्रव्य जानना और जैसा उनका भाव है वैसा ही भाव जानना ।। २८ ।। इसप्रकार ही कथन आगे कहते हैं । प्रथम ही नाम को प्रधान करके कहते हैं:-- १ सं० प्रति में संपदिम' पाठ है। २ ' सगुणपज्ज्या' इस पद की छाया में स्वगुण पर्याय:' स० प्रति में है । अभिधान-स्थापन-द्रव्य भावे, स्वीय गुणपर्यायथी, अर्हत जाणी शकाय छे आगति- च्यवन-संपत्ति थी । २८ । Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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