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________________ ११४ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [अष्टपाहुड जह णवि लहदि हु लक्खं रहिओ कंडस्स वेज्झचविहीणो। तह णवि लक्खदि लक्खं अण्णाणी मोक्खमग्गस्स।।२१।। तथा नापि लभते स्फुट लक्षं रहितः कांडस्य वेधकविहीनः। तथा नापि लक्षयति लक्षं अज्ञानी मोक्षमार्गस्य।।२१।। अर्थ:--जैसे वेधने वाला ( वेधक) जो बाण, उससे रहित ऐसा जो पुरुष है वह कांड अर्थात् धनुषके अभ्यास से रहित हो तो लक्ष्य अर्थात् निशानेको नहीं पाता है, वैसे ही ज्ञान से रहित अज्ञानी है वह दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप जो मोक्षमार्ग उसका लक्ष्य अर्थात् स्वलक्षण जानने योग्य परमात्मा का स्वरूप, उसको नहीं प्राप्त कर सकता। भावार्थ:--धनुष धारी धनुष के अभ्यास से रहित और 'वेधक' जो बाण उससे रहित हो तो निशाने को नहीं प्राप्त कर सकता, वैसे ही ज्ञान रहित अज्ञानी मोक्षमार्ग का निशाना जो परमात्मा का स्वरूप है उसको न पहिचाने तब मोक्षमार्ग की सिद्धि नहीं होती है, इसलिये ज्ञान को जानना चाहिये। परमात्मारूप निशाना ज्ञानरूपबाण द्वारा वेधना योग्य है।। २१ ।। आगे कहते हैं कि इसप्रकार ज्ञान-विनयसंयुक्त पुरुष होवे वही मोक्षको प्राप्त करता है:-- णाणं पुरिसस्स हवदि लहदि सुपुरिसो वि विणयसंजुत्तो। णाणेण लहदि लक्खं लक्खंतो मोक्खमग्गस्स।। २२।। ज्ञानं पुरुषस्य भवति लभते सुपुरुषोऽपि विनयसंयुक्तः। ज्ञानेन लभते लक्ष्यं लक्षयन् मोक्षमार्गस्य।। २२।। अर्थ:--ज्ञान पुरुषको होता है और पुरुष ही विनयसंयुक्त हो सो ज्ञानको प्राप्त करता है; जब ज्ञानको प्राप्त करता है तब उस ज्ञान द्वारा ही मोक्षमार्ग का लक्ष्य जो 'परमात्मा स्वरूप' उसको लक्षता-देखता-ध्यान करता हुआ उस लक्ष्यको प्राप्त करता है। १ 'बेधक' - 'वेध्यक' पाठान्तर है। शर-अज्ञ वेध्य-अजाण जेम करे न प्राप्त निशानने, अज्ञानी तेम करे न लक्षित मोक्षपथना लक्ष्यने। २१। रे! ज्ञान नरने थाय छे; ते, सुजन तेम विनीतने; ते ज्ञानथी करी लक्ष, पामे मोक्षपथना लक्ष्यने। २२। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008211
Book TitleAshtapahuda
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorMahendramuni
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages418
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, Religion, & Sermon
File Size5 MB
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