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विषय मोक्षमें कारण क्या है ? गुणोंमें उत्तरोत्तर श्रेष्ठपना ज्ञानादि गुणचतुष्ककी प्राप्ति में ही निस्संदेह जीव सिद्ध है सुरासुरवंद्य अमूल्य रत्न सम्यग्दर्शन ही हे सम्यक्दर्शन का महात्म्य स्थावर प्रतिमा अथवा केवल ज्ञानस्थ अवस्था जंगम प्रतिमा अथवा कर्म देहादि नाशके अनन्तर निवारण प्राप्ति
२. सूत्र पाहुड सूत्रस्थ प्रमाणीकता तथा उपादेयता भव्य (त्व) फल प्राप्तिमें ही सूत्र मार्ग की उपादेयता देशभाषाकानिर्दिष्ट अन्य ग्रन्थानुसार आचार्य परम्परा द्वादशांग तथा अंग बाह्य श्रुत का वर्णन दृष्टांत द्वारा भवनाशकसूत्रज्ञानप्राप्तिका वर्णन सूत्रस्थ पदार्थो का वर्णन और उसका जाननेवाला सम्यग्दृष्टि व्यवहार परमार्थ भेदद्वयरूप सूत्रका ज्ञाता मलका नाश कर सुख को पाता है टीका द्वारा निश्चय व्यवहार नयवर्णित व्यवहार परमार्थसूत्र का कथन सूत्रके अर्थ व पदसे भ्रष्ट है वह मिथ्यादृष्टि है हरिहरतुल्य भी जो जिन सूत्रसे विमुख हैं उसकी सिद्धि नहीं उत्कृष्ट शक्तिधारक संघनायक मुनि भी यदि जिनसूत्रसे विमुख हैं तो वह मिथ्यादृष्टि
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जिनसूत्रमें प्रतिपादित ऐसा मोक्षमार्ग अन्य अमार्ग सरिंभ परिग्रहसे विरक्त हुआ जिनसूत्रकथित संयमधारक सुरासुरादिकर वंदनीक है अनेक शक्तिसहित परीषहों से जीतनेवाले ही कर्मका क्षय तथा निर्जरा करते हैं वे वंदन करने योग्य हैं इच्छाकार करने योग्य कौन? इच्छाकार योग्य श्रावकका स्वरूप अन्य अनेक धर्माचरण होनेपर भी इच्छाकारके अर्थसे अज्ञ है उसको भी सिद्धि नहीं इच्छाकार विषयक दृढ़ उपदेश जिनसूत्रके जाननेवाले मुनियोंका वर्णन यथाजातरूपतामें अल्पपरिग्रह ग्रहणसे भी क्या दोष होता है उसका कथन जिनसूत्रोक्त मुनि अवस्था परिग्रह रहित ही है परिग्रहसत्ता में निंद्य है प्रथम वेष मुनि का है तथा जिन प्रवचन में ऐसे मुनि वंदना योग्य हैं दूसरा उत्कृष्ट वेष श्रावकका है तीसरा वेष स्त्रीका है वस्त्र धारकों के मोक्ष नहीं, चाहे वह तीर्थंकर भी क्यों न हो, मोक्ष नग्न (दिगम्बर) अवस्था में ही है स्त्रियों के नग्न दिगम्बर दीक्षा के अवरोधक कारण
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