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________________ विहारस्थल-नाम-कोष ३९५ भगवान् महावीर का विशाखा में समवसरण हुआ था । वीतभय--यह नगर महावीर के समय में सिन्धु-सौवीर देश की राजधानी थी । इसके बाहर मृगवन उद्यान था । महावीर चम्पा से विहार कर यहाँ आये थे और यहाँ के राजा उदायन को प्रव्रज्या देकर वाणिज्यग्राम जाकर वर्षाकाल बिताया था । पंजाब के भेरा गाँव को प्राचीन वीतभय बताते हैं । वीरपुर-इसके बाहर मनोरम नामक उद्यान था । राजा का नाम वीरकृष्णमित्र और रानी का श्रीदेवी था । भगवान् महावीर ने एक बार यहाँ आकर राजकुमार सुजात को श्रावकधर्म अंगीकार कराया था और दूसरी बार पधार कर उसको प्रव्रज्या देकर शिष्य बनाया था । तहसील मुहमदाबाद में गाजीपुर से बाईस मील पर वारा के सामने एक बहुत ही प्राचीन स्थान है। पुराने सिक्के आदि प्राचीन चीजें मिलती हैं । संभव है यही प्राचीन वीरपुर होगा जिसका अवशेष वारा अब तक विद्यमान है। वीरभूमि-प्राचीन राढ देश का एक भाग वीरभूमि कहलाता है जिसका जैनसूत्रों में वज्जभूमि अथवा वज्रभूमि के नाम से उल्लेख हुआ है । छद्मस्थावस्था में और बाद में भी भगवान् महावीर यहाँ विचरे थे। वीरभूमि के उत्तर-पश्चिम में संथाल परगना, पूर्व में मुर्शिदाबाद और बर्दवान तथा दक्षिण में बर्दवान हैं । वेगवती—यह नदी अस्थिकग्राम के समीप बहती थी । वैताढ्य-यह पर्वत-माला प्राचीन भारतवर्ष के मध्य भाग में पूर्व से पश्चिम सीमा तक लंबी फैली हुई थी । इसका आधुनिक नाम और स्थान बताना कठिन है । कोई शैवालिक पहाड़ियाँ और कोई हिमालय की दक्षिणी पर्वत श्रेणी ही वैताढ्य पर्वतमाला होने की संभावना करते हैं । वैभारगिरि-यह पर्वत राजगह के पाँच पर्वतों में एक है । महावीर के समय में इसके पास पाँच सौ धनुष लंबा एक गरम पानी का हुद था, जिसका जैनसूत्रों में 'महातपोपतीर' नाम से उल्लेख हुआ है और उसे 'प्रस्रवण' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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