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विहारस्थल-नाम-कोष
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भगवान् महावीर का विशाखा में समवसरण हुआ था ।
वीतभय--यह नगर महावीर के समय में सिन्धु-सौवीर देश की राजधानी थी । इसके बाहर मृगवन उद्यान था । महावीर चम्पा से विहार कर यहाँ आये थे और यहाँ के राजा उदायन को प्रव्रज्या देकर वाणिज्यग्राम जाकर वर्षाकाल बिताया था । पंजाब के भेरा गाँव को प्राचीन वीतभय बताते हैं ।
वीरपुर-इसके बाहर मनोरम नामक उद्यान था । राजा का नाम वीरकृष्णमित्र और रानी का श्रीदेवी था । भगवान् महावीर ने एक बार यहाँ आकर राजकुमार सुजात को श्रावकधर्म अंगीकार कराया था और दूसरी बार पधार कर उसको प्रव्रज्या देकर शिष्य बनाया था ।
तहसील मुहमदाबाद में गाजीपुर से बाईस मील पर वारा के सामने एक बहुत ही प्राचीन स्थान है। पुराने सिक्के आदि प्राचीन चीजें मिलती हैं । संभव है यही प्राचीन वीरपुर होगा जिसका अवशेष वारा अब तक विद्यमान है।
वीरभूमि-प्राचीन राढ देश का एक भाग वीरभूमि कहलाता है जिसका जैनसूत्रों में वज्जभूमि अथवा वज्रभूमि के नाम से उल्लेख हुआ है । छद्मस्थावस्था में और बाद में भी भगवान् महावीर यहाँ विचरे थे।
वीरभूमि के उत्तर-पश्चिम में संथाल परगना, पूर्व में मुर्शिदाबाद और बर्दवान तथा दक्षिण में बर्दवान हैं ।
वेगवती—यह नदी अस्थिकग्राम के समीप बहती थी ।
वैताढ्य-यह पर्वत-माला प्राचीन भारतवर्ष के मध्य भाग में पूर्व से पश्चिम सीमा तक लंबी फैली हुई थी । इसका आधुनिक नाम और स्थान बताना कठिन है । कोई शैवालिक पहाड़ियाँ और कोई हिमालय की दक्षिणी पर्वत श्रेणी ही वैताढ्य पर्वतमाला होने की संभावना करते हैं ।
वैभारगिरि-यह पर्वत राजगह के पाँच पर्वतों में एक है । महावीर के समय में इसके पास पाँच सौ धनुष लंबा एक गरम पानी का हुद था, जिसका जैनसूत्रों में 'महातपोपतीर' नाम से उल्लेख हुआ है और उसे 'प्रस्रवण'
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