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________________ ३८४ श्रमण भगवान् महावीर नगर के अनेक उद्यान होते थे यह तो निर्विवाद बात है, परन्तु राजा भी कालविभाग से भिन्न हो सकते हैं, इस दृष्टि से दोनों पोलासपुर एक भी हो सकते हैं । पोलासपुर उत्तर हिन्दुस्तान का एक समृद्ध नगर था । प्रतिष्ठानपुर-गंगा के बाएँ किनारे पर जहाँ आज झूसी नगर है, पूर्व समय में यहाँ पर चंद्रवंशी राजाओं की राजधानी प्रतिष्ठानपुर नगर था । प्रतिष्ठानपुर (२) यह नगर सातवाहन राजा की राजधानी थी । इसकी अवस्थिति औरंगाबाद जिले में औरंगाबाद से दक्षिण में अट्ठाईस मील पर गोदावरी नदी के उत्तर तट पर है । एक समय यह नगर अस्मक देश की राजधानी पोतनपुर के नाम से प्रसिद्ध था । आजकल यह पैठन नाम से पहिचाना जाता है । जैनाचार्य कालक ने इसी प्रतिष्ठानपुर में सांवत्सरिक पर्व पंचमी से चतुर्थी में कायम किया था । बनारस-वाराणसी का अपभ्रंश बनारस है। पहले यहाँ वरणा तथा असि नदी के संगम पर बसी हुई वाराणसी नाम की एक प्रसिद्ध नगरी थी जो काशि-राष्ट्र की राजधानी थी । इसके बाहर कोष्ठक नामक चैत्य था, जहाँ पर भगवान् महावीर ठहरा करते थे। यहाँ के तत्कालीन राजा का नाम जितशत्रु लिखा मिलता है । चुलनीपिता और सुरादेव नामक यहाँ के धनाढ्य गृहस्थ महावीर के दस श्रमणोपासकों में से थे । यहाँ के राजा लक्ष को काममहावन चैत्य में महावीर ने अपना श्रमणशिष्य बनाया था । भगवान् महावीर के मुख्य विहार क्षेत्रों में से बनारस भी एक था । यहीं के नौ गणराज महावीर के निर्वाण समय में पावा में उपस्थित थे और उस दिन उन सबके उपवास था । बहुसालग्राम-इसके बाहर सालवन उद्यान था, जहाँ सालार्या व्यन्तरी ने महावीर की पूजा की थी । यह गाँव मद्दना गाँव और लोहार्गला राजधानी के बीच में पड़ता था । बहुसाल चैत्य-यह चैत्य ब्राह्मणकुण्डपुर के पास था । यहाँ से क्षत्रियकुंडपुर भी दूर नहीं था । ऋषभदत्त ब्राह्मण, देवानन्दा ब्राह्मणी और जमालि आदि पाँच सौ क्षत्रियपुत्रों ने इसी चैत्य में महावीर के हाथ प्रव्रज्या धारण की थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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