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विहारस्थल-नाम-कोष
३७७ का जैन सूत्रों में उल्लेख है । ताम्रलिप्ति के समीपवर्ती प्रदेश को कहीं-कहीं 'समतट' भी कहा है । क्योंकि यह प्रदेश समुद्रतट के निकट था और ताम्रलिप्ति बंगदेश का प्रसिद्ध बंदरगाह था । आजकल मिदनापुर जिला में जहाँ तामलुक नगर है यहीं पहले ताम्रलिप्ति नगरी थी । चीन के प्रसिद्ध यात्री हुएनत्संग की भारत यात्रा के समय (इसवी सन् ६३० के बाद) तक ताम्रलिप्ति सामुद्रिक बंदर पर अवस्थित थी पर अब तामलुक से लगभग साठ मील दूर तक समुद्र हट गया है। महावीर के ताम्रलिप्ति में विहार करने का प्राकृतचरित्रों में उल्लेख मिलता है।
तिन्दुकोद्यान-श्रावस्ती का वह उद्यान जहाँ पार्श्वसंतानीय केशीकुमार श्रमण ठहरे थे और इन्द्रभूति गौतम ने उनके साथ धर्मचर्चा की थी ।
तुंगिक संनिवेश-यह संनिवेश महावीर के दसवें गणधर का जन्म स्थान था । वह संनिवेश वत्सदेश के अन्तर्गत था, अतः मांगीतुंगी गाँव ही प्राचीन तुंगिक संनिवेश होना चाहिए ।
तुंगिया नगरी-यह नगरी राजगृह के निकटवर्ती थी। जब महावीर राजगृह के उद्यान में विराजते थे और गौतम राजगृह में भिक्षाटन में निकले थे तब कालियपुत्र प्रमुख पाँच सौ पार्श्वसंतानीय स्थविर तुंगिया के पुष्पवृतिक चैत्य में आये थे और राजगृह-निवासी धार्मिक जनों ने उनके पास जाकर धर्म-श्रवण और धर्म-चर्चा की थी और उसका पता इंद्रभूति को जनसंवाद से मिला था । तुंगीया के जैनगृहस्थ धनी, मानी और दृढ़धर्मी थे, ऐसा भगवतीसूत्र के वर्णन से पाया जाता है। तीर्थमालाओं के कवि लोग विहार नगर को ही तुंगिया बताते हैं, इससे ज्ञात होता है कि विहार से दो कोस पर जो तुंगीगाम है वह प्राचीन तुंगीया का ही अवशेष होगा ।
तोसलिगाम—इस तोसली के बाहर संगमक ने महावीर पर चोर का संदेह उत्पन्न कराकर उन्हें सताया और भूतिल इंद्रजालिक ने आपको छुड़ाया था । दूसरी बार भगवान् को तोसलि के स्वामी तोसलि क्षत्रिय के पास चोर के संदेह में खड़ा किया गया था और क्षत्रिय ने आपको फाँसी का हुक्म दिया था; पर सात बार फाँसी का फंदा टूट जाने पर आपको निर्दोष समझ
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