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________________ विहारस्थल-नाम-कोष ३६९ एक का नाम कुत्स अथवा कोच्छ था । पूरनिया जिला जो कौशिकी नदी के पूर्व की ओर है, पहले कौशिकी कच्छ कहलाता था; वही यह कुत्स अथवा 'कोच्छ' देश होना चाहिये । कुनाल (कुणाला)-श्रावस्ती के आसपास के देश, उत्तर कोशल, का नाम जैन सूत्रों में 'कुणाला' लिखा है । कुनाल साढ़े पच्चीस आर्य देशों में से एक था । इसकी राजधानी का नाम श्रावस्ती अथवा सावत्थी था । कमाराक संनिवेश (कुमाराय संनिवेस)---इसके बाहर चम्परमणीयोद्यान में भगवान् महावीर ने ध्यान किया था, जिस समय गोशालक को पापित्य साधु मिले थे और उनके साथ कटाक्षपूर्ण वार्तालाप हुआ था । यह संनिवेश संभवतः अंगदेश के पृष्ठचम्पा के निकट था । कुरु-यह देश पाञ्चाल के पश्चिम में और मत्स्य के उत्तर में था । अति प्राचीनकाल में इसकी राजधानी हस्तिनापुर में थी, जहाँ शान्तिनाथ आदि अनेक तीर्थंकरों का जन्म हुआ था । पाण्डवों ने इन्द्रप्रस्थ को इस देश की राजधानी कायम किया था । कुरुजांगल-जिसका दूसरा नाम श्रीकण्ठ देश है । यह देश हस्तिनापुर से उत्तर-पश्चिम में था । सहारनपुर से तेंतीस मील उत्तर-पश्चिम की ओर विलासपुर इसकी राजधानी थी । जैन सूत्रों में जंगल देश की राजधानी का नाम अहिच्छत्रा लिखा है। इससे मालूम होता है कि उत्तर पाञ्चाल और कुरु देश का संयुक्तराष्ट्र कुरुजांगल कहलाता होगा और उसकी राजधानी विलासपुर होगी । कुशार्त (कुसट्टा)-जैनसूत्रोक्त साढ़े पच्चीस आर्य देशों में कुशार्त का नाम भी सम्मिलित है । कुशार्त की राजधानी का नाम शोरीपुर अथवा सौर्यपुर था । इसे यादव शौरि ने बसाया था । भगवान् नेमिनाथ का इसी सौर्यपुर में जन्म हुआ था । जरासंध के विरोध के कारण यादवों ने इस प्रदेश को छोड़ कर द्वारिका को अपनी राजधानी बनाया था। मथुरा के चारों ओर का प्रदेश सूरसेन और सूरसेन से उत्तर का देश कुशार्त नाम से प्रसिद्ध था । आगरा से देहली के रास्ते तेईस मील पर शकुराबाद स्टेशन और वहीं के श्रमण - २४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008068
Book TitleShraman Bhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2002
Total Pages465
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Philosophy
File Size8 MB
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