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श्रमण भगवान् महावीर आजकल रांगामाती नगर है, पौराणिक काल में यहाँ पर पश्चिम बंगाल की राजधानी कर्णसुवर्ण नगर था । आजकल इसका अपभ्रंश नाम 'कानसोना' है। भगवान् महावीर के समय में कर्णसुवर्ण कोटिवर्ष के नाम से प्रसिद्ध था ।
कर्मारग्राम (कम्मारगाम)-प्रव्रज्या लेकर महावीर प्रथम रात्रि यहाँ ठहरे थे और यहीं आपको सर्वप्रथम गोपद्वारा उपसर्ग हुआ था ।
कर्मारग्राम का अर्थ कर्मकारग्राम अर्थात् मजदूरों का गाँव होता है । कहीं-कहीं कार का अर्थ लोहकार भी लिखा है। इससे जहाँ भगवान् दीक्षा लेकर प्रथम रात्रिवास ठहरे थे, वह या तो मजदूरों की बसती थी अथवा लोहारों का गाँव । यह गाँव क्षत्रियकुण्ड के निकट था, यह निश्चित है । कर्मारग्राम से दूसरे दिन विहार करके भगवान् ने कोल्लाकसंन्निवेश में पारणा किया था । यह कोल्लाक वाणिज्यग्राम और उसके उद्यान दूतिपलाश के बीच में पड़ता था, ऐसा उपासकदशासूत्र के प्रथमाध्ययन के वर्णन से सिद्ध होता है । वाणिज्यग्राम और वैशाली एक दूसरे के समीप थे, यह कल्पसूत्र आदि के उल्लेखों से सिद्ध है । इन बातों से सिद्ध होता है कि भगवान् का जन्मस्थान कुण्डपुर, उपसर्गस्थान कर्मारग्राम और प्रथमपारणास्थान कोल्लाकसंनिवेश, ये सब एक दूसरे के पास-पास थे ।
कलंबुका (कलंबुआ) यहाँ पर महावीर और गोशालक कालहस्ती के हाथ से पकड़े गये और उसके भाई मेघ के पास ले जाने के बाद छोड़ दिए गये थे । कलंबुका अंगदेश के पूर्व प्रदेश में कहीं रहा होगा, क्योंकि यहाँ से भगवान् सीधे राढदेश में गये थे ।
कलिंग-उड़ीसा से दक्षिण में और द्राविड़ से उत्तर में महानदी और गोदावरी के बीच का समुद्र तट का देश जिसको आज-कल उत्तर सरकार के नाम से पहिचानते हैं, प्राचीन 'कलिंग' देश है । महावीर के समय में कलिंग की राजधानी काञ्चनपुर नगर था, जो सामान्य रूप से कलिंग नगर भी कहलाता था । सातवीं शताब्दी में कलिंग नगर भुवनेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो आज तक इसी नाम से प्रख्यात है।
काकन्दी—यह उत्तर भारतवर्ष की प्राचीन और प्रसिद्ध नगरी थी ।
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