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१६. मोक्षमार्गसूत्र १९२. जिनशासन मे ‘मार्ग' तथा 'मार्गफल' इन दो प्रकारो से कथन
किया गया है । 'मार्ग' 'मोक्ष' का उपाय है। उसका 'फल' 'निर्वाण' या 'मोक्ष' है।
१९३ जिनेन्द्रदेव ने कहा है कि ( सम्यक् ) दर्शन, ज्ञान, चारित्र
मोक्ष का मार्ग है । साधुओं को इनका आचरण करना चाहिए । यदि वे श्वाश्रित होते है तो इनसे मोक्ष होता
है और पराश्रित होने से वन्ध होता है । १९४. अज्ञानवश यदि ज्ञानी भी ऐसा मानने लगे कि शुद्ध सम्प्रयोग
अर्थात् भक्ति आदि शुभभाव से दु.ख-मुक्ति होती है, तो वह भी राग का अंश होने से पर-समयरत होता है।
१९५. जिनेन्द्रदेव द्वारा प्ररूपित व्रत, समिति, गुप्ति, शील और तप
का आचरण करते हुए भी अभव्य जीव अज्ञानी और मिथ्यादृष्टि ही है।
१९६. जो निश्चय और व्यवहारस्वरूप रत्नत्रय (दर्शन, ज्ञान, चारित्र)
को नहीं जानता, उसका सब-कुछ करना मिथ्यारूप है, यह जिनदेव का उपदेश है ।
१९७. अभव्य जीव यद्यपि धर्म में श्रद्धा रखता है, उसकी प्रतीति
करता है, उसमें रुचि रखता है, उसका पालन भी करता है, किन्तु यह सब वह धर्म को भोग का निमित्त समझकर करता है, कर्मक्षय का कारण समझकर नही करता।
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