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ज्योतिर्मुख १७५. जो सदा गुरुकुल मे वास करता है, जो समाधियुक्त होता है,
जो उपधान (श्रुत-अध्ययन के समय) तप करता है, जो प्रिय करता है, जो प्रिय बोलता है, वह शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
१७६. जैसे एक दीप से मैकड़ों दीप जल उठते है और वह स्वय भी
दीप्त रहता है, वैसे ही आचार्य दीपक के समान होते है। वे स्वयं प्रकाशवान् रहते है, और दूसरों को भी प्रकाशित करते है।
१५. आत्मसूत्र १७७. तुम निश्चयपूर्वक यह जानो कि जीव उत्तम गुणों का आश्रय,
सब द्रव्यो मे उत्तम द्रव्य और सब तत्त्वों में परम तत्त्व है।
१७८ जाव (आत्मा) तीन प्रकार का है बहिरात्मा, अन्तरात्मा
और परमात्मा। परमात्मा के दो प्रकार है : अर्हत् और सिद्ध ।
१७९. इन्द्रिय-समूह को आत्मा के रूप में स्वीकार करनेवाला बहि
रात्मा है। आत्म-सकल्प--देह से भिन्न आत्मा को स्वीकार करनेवाला अन्तरात्मा है ! कर्म-कलक से विमुक्त आत्मा परमात्मा है।
१८०.
केवलज्ञान से समस्त पदार्थो को जाननेवाले स-शरीरी जीव अर्हत् है तथा सर्वोत्तम सुख (मोक्ष) को सप्राप्त ज्ञान-शरीरी जीव सिद्ध कहलाते हैं।
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