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ज्योतिर्मुख
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१६९ वस्तुओं को उठाने धरने में, मल-मूत्र का त्याग करने में, बैटने तथा चलने-फिरने में, और शयन करने से जो दयालु पुरुष सदा अप्रमादी रहता है, वह निश्चय ही अहिसक है ।
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१७१. इन पाँच स्थानो या कारणो से रिक्षा प्राप्त नही होती . १ अभिमान, २ क्रोध, ३ प्रसाद. ४. रोग ओर
आलस्य ।
१४. शिक्षासूत्र
अविनयी के ज्ञान आदि गुण नष्ट हो जाते है, यह उसकी विपत्ति है और विनयी को ज्ञान आदि गुणो की सम्प्राप्ति होती है, ( यह उसकी सम्पत्ति है । इन दोनो बातो को जाननेवाला ही ग्रहण और आसेवन रूप ) सच्ची शिक्षा प्राप्त करता है ।
१७२-१७३. इन आठ स्थितियो या कारणो से मनुष्य शिक्ष शील कहा जाता है १ हँसी-मजाक नहीं करना, २ सदा इन्द्रिय और मन का दमन करना, ३ किसीका रहस्योद्घाटन न करना, ४. अशील ( ( सर्वथा आचारविहीन ) न होना, ५ विशील ( दोषों से कलकित ) न होना, ६ अति रसलोलुप न होना, ७. अक्रोधी रहना तथा ८ सत्यरत होना ।
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अध्ययन के द्वारा व्यक्ति को ज्ञान और चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है । वह स्वयं धर्म मे स्थित होता है और दूसरो को दी स्थिर करता है तथा अनेक प्रकार के श्रुत का अध्ययन करव श्रुतसमाधि में रत हो जाता है ।
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