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ज्योतिर्मुख
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१६२. 'धार्मिकों का जागना श्रेयस्कर है और अधार्मिकों का सोना श्रेयस्कर है -- ऐसा भगवान् महावीर ने वत्सदेश के राजा शतानीक की बहन जयन्ती से कहा था ।
१६३. आशुप्रज्ञ पंडित सोये हुए व्यक्तियों के बीच भी जागृत रहे । प्रमाद मे विश्वास न करे । मुहूर्त बडे घोर (निर्दयी ) होते है । शरीर दुर्बल है, इसलिए वह भारण्ड पक्षी की भाँति अप्रमत्त होकर विचरण करे ।
१६४. प्रमाद को कर्म (आस्रव) और अप्रमाद को अकर्म ( सवर ) कहा है । प्रमाद के होने से मनुष्य बाल ( अज्ञानी ) होता है । प्रमाद के न होने से मनुष्य पडित ( ज्ञानी ) होता है ।
१६५. ( अज्ञानी साधक कर्म-प्रवृत्ति के द्वारा कर्म का क्षय होना मानते है किन्तु ) वे कर्म के द्वारा कर्म का क्षय नही कर सकते । धीर पुरुष अकर्म ( संवर या निवृत्ति) के द्वारा कर्म का क्षय करते है । मेधावी पुरुष लोभ और मद से अतीत तथा सन्तोषी होकर पाप नही करते ।
१६६. प्रमत्त को सब ओर से भय होता है । अप्रमत्त को कोई भय नही होता ।
१६७. आलसी सुखी नही हो सकता, निद्रालु विद्याभ्यासी नही हो सकता, ममत्व रखनेवाला वैराग्यवान नही हो सकता, और हिसक दयालु नही हो सकता !
सतत जागृत रहो। जो जागता है उसकी बुद्धि बढती है । जो सोता है वह धन्य नही है, धन्य वह है, जो सदा
जागता है ।
१६८. मनुष्यो !
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