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ज्योतिर्मुख
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९५. सत्यवादी मनुष्य माता की तरह विश्वसनीय, जनता के लिए गुरु की तरह पूज्य और स्वजन की भाँति होता है ।
सबको प्रिय
९६. सत्य मे तप, संयम और शेष समस्त गुणो का जैसे समुद्र मत्स्यो का कारण उत्पत्तिस्थान है, समस्त गुणो का कारण है ।
९७. जैसे-जैसे लाभ होता है, वैसे-वैसे लोभ होता है । लाभ से लोभ बढ़ता जाता है । दो माशा सोने से निप्पन्न ( पूरा ) होनेवाला कार्य करोड़ो स्वर्ण मुद्राओं से भी पूरा नही होता । ( यह निष्कर्ष कपिल नामक व्यक्ति की तृष्णा के उतार-चढ़ाव के परिणाम को सूचित करता है | )
९८. कदाचित् सोने और चाँदी के कैलास के समान असंख्य पर्वत हो जायें, तो भी लोभी पुरुष को उनसे कुछ भी नही होता (तृप्ति नही होती ), क्योंकि इच्छा आकाश के समान अनन्त है ।
९९. जैसे बलाका अण्डे से उत्पन्न होती है और अण्डा बलाका से उत्पन्न होता है, उसी प्रकार तृष्णा मोह से उत्पन्न होती है और मोह तृष्णा से उत्पन्न होता है ।
वास होता है । वैसे ही सत्य
१००. ( अत. ) जो समता व सन्तोषरूपी जल से तीव्र लोभरूपी मलसमूह को धोता है और जिसमे भोजन की लिप्सा नही है, उसके विमल शौचधर्म होता है ।
१०१. व्रत धारण, समिति पालन, कषाय- निग्रह, मन-वचन-काया की प्रवृत्तिरूप दण्डों का त्याग, पंचेन्द्रिय-जय -- इन सबको सयम कहा जाता है ।
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