________________
परिशिष्ट : २
पारिभाषिक शब्दकोश
[अंक गाथाओ के द्योतक है। जिन अंको के साथ सूत्र लिखा है, वे अकं प्रकरण के द्योतक है।
अंग-सम्यग्दर्शन के आठ गण (सूत्र १८) आदि से निरपेक्ष जन्म-जात तात्त्विक अगार-वेश्म या घर (२९८)
अश्रद्धान (५४९) अज्ञान-मोहयुक्त मिथ्याज्ञान (२८९) अनर्थदण्डव्रत-प्रयोजनविहीन कार्यों का अज्ञानी-मिथ्यादप्टि (१९५)
त्याग (३२१-३२२) अजीव-सुख दुख तथा हिताहित के ज्ञान अनशन-कर्मो की निर्जरार्थ यथाशक्ति एक
से (५९३) और चेतना से रहित दो दिन आदि के लिए आहार-त्यागपुद्गल आदि पाँच द्रव्य (६२५) रूप तप (४४२-४४७) अणवत-श्रावको के पाँच व्रत ( सूत्र ३००) अनित्य-अनप्रेक्षा-वैराग्य-वृद्धि के लिए अतिथिसंविभागवत-साधु को चार प्रकार जगत् की क्षणभगुरता का बारम्बार का दान देना (३३०-३३१)
चिन्तन (५०७-५०८) अतीन्द्रिय सुख-आत्म-जात निराकूल अनिवृत्तिकरण-साधक की नवम भूमि, __ आनन्दानुभूति (६१४-६१५)
जिसमे समान समयवर्ती सभी साधको अदत्तादान-व्रत-अचौर्यव्रत (३१३)
के परिणाम समान हो जाते है, और अधर्मद्रव्य-जीव तथा पुदगल की स्थिति मे, प्रतिसमय उत्तरोत्तर अनन्तगणी
पृथिवी की भॉति सहायक, लोकाकाश विशुद्धता को प्राप्त होते रहते है (५५८) प्रमाण एक अमूर्त द्रव्य (६२५, ६२९, अनुप्रेक्षा-वैराग्य-वृद्धि के लिए बार-बार
चिन्तवन की जानेवाली १२ भावनाएँ अध्यवसान-पदार्थ-निश्चय (५४५) (सूत्र ३०) अध्यवसाय-कर्म-बन्ध का कारण, जीव की अनेकान्त-वस्तु की स्वतन्त्र सत्ता का या राग-बुद्धि (१५४, ३९२)
वस्तु की अनन्त धर्मात्मकता का निदर्शक अध्यात्म-शुद्धात्मा में विशुद्धता का आधार- तत्त्व , नित्यत्व-अनित्यत्व आदि परस्परभूत अनुष्ठान (१६७)
विरोधी अनेक धर्म-युगलो से युक्त वस्तु अनगार-गृहत्यागी साधु (३३६)
का अविभाज्य एकरसात्मक जात्यन्त र अनभिगृहीत मिथ्यात्व-दूसरे के उपदेश स्वरूप (६६९-६७२)
- २५९ -
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org