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तत्त्व-दर्शन
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६४१. स्कन्ध पुद्गल के छह प्रकार ये हैं-- अतिस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और अतिसूक्ष्म । पृथ्वी आदि इसके छह दृष्टान्त है |
६४२ पृथ्वी, जल, छाया, नेत्र तथा शेष चार इन्द्रियों के विषय, कर्म तथा परमाणु--इस प्रकार जिनदेव ने स्कन्धपुद्गल के छह दृष्टान्त है | [ पृथ्वी अतिस्थूल का जल स्थूल का, छायाप्रकाश आदि नेत्रइन्द्रिय विषय स्थूल सूक्ष्म का रस-गध-स्पर्शशब्द आदि इन्द्रिय-विपय सूक्ष्म - स्थूल का, कार्मण-स्कन्ध सूक्ष्म का तथा परमाणु अतिसूक्ष्म का दृष्टान्त है । ]
६४३. जो आदि मध्य और अन्त से रहित है, जो केवल एकप्रदेशी है -- जिसके दो आदि प्रदेश नही है और जिसे इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नही किया जा सकता, वह त्रिभागविहीन द्रव्य परमाणु है ।
६४४. जिसमे रण गलन की क्रिया होती है अर्थात् जो टूटता - जुड़ता रहता है, वह पुद्गल है । स्कन्ध की भाँति परमाणु के भी स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण गुणों मे सदा पूरण- गलन क्रिया होती रहती है, इसलिए परमाणु भी पुद्गल है ।
६४५. जो चार प्राणो से वर्तमान मे जीता है, भविष्य मे जीयेगा और अतीत में जिया है वह जीव द्रव्य है । प्राण चार है—-- बल, इन्द्रिय, आयु और उच्छ्वास ।
६४६. व्यवहारनय की अपेक्षा समुद्घात अवस्था को छोड़कर सकोचविस्तार की शक्ति के कारण जीव अपने छोटे या बड़े शरीर के बराबर परिमाण (आकार) का होता है । किन्तु निश्चयनय की अपेक्षा जीव असख्यातप्रदेशी है ।
६४७. जैसे पद्मरागमणि दूध में डाल देने पर अपनी प्रभा से प्रभासित करती है -- दुग्धपात्र के नही करती, वैसे ही जीव शरीर में रहकर अपने शरीर मात्र को प्रभासित करता है- -अन्य किसी बाह्य द्रव्य को नही ।
दूध को बाहर के किसी पदार्थ को
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