SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्व-दर्शन २०१ ६२७. जीव और पुद्गलकाय ये दो द्रव्य सक्रिय है। शेष सब द्रव्य निष्क्रिय है। जीव के सक्रिय होने का बाह्य साधन कर्म नोकर्मरूप पुद्गल है और पुद्गल के सक्रिय होने का बाह्य साधन कालद्रव्य है। ६२८. धर्म, अधर्म और आकाश ये तीनों द्रव्य संख्या में एक-एक है । (व्यवहार-) काल, पुद्गल और जीव ये तीनों द्रव्य अनंतअनत है। ६२९. धर्म और अधर्म ये दोनों ही द्रव्य लोकप्रमाण है । आकाश लोक और अलोक मे व्याप्त है। (व्यवहार-) काल केवल समयक्षेत्र अर्थात् मनुप्यक्षेत्र में ही है । ६३०. ये सब द्रव्य परस्पर में प्रविष्ट है। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य को अवकाश देते हुए स्थित है। ये इसी प्रकार अनादिकाल से मिले हुए है, किन्तु अपना-अपना स्वभाव नहीं छोड़ते है । ६३१. धर्मास्तिकाय रस-रहित है, रूप-रहित है, स्पर्श-रहित, गन्ध-रहित और शब्द-रहित है। समस्त लोकाकाश में व्याप्त है, अखण्ड है, विशाल है और असंख्यातप्रदेशी है । ६३२. जैसे इस लोक मे जल मछलियों के गमन में सहायक होता है, वैसे ही धर्मद्रव्य जीवों तथा पुद्गलों के गमन में सहायक या निमित्त बनता है । ६३३. धर्मास्तिकाय स्वय गमन नही करता और न अन्य द्रव्यो का गमन कराता है । वह तो जीवों और पुद्गलों की गति में उदासीन कारण है। यही धर्मास्तिकाय का लक्षण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy