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तत्त्व-दर्शन
६१५ चक्रवतियों को, उत्तरकुरु, दक्षिणकुरु आदि भोगभूमिवाले
जीवों को, तथा फणीन्द्र, सुरेन्द्र एवं अहमिन्द्रो को त्रिकाल में जितना सुख मिलता है उस सबसे भी अनन्तगुना सुख सिद्धो
को एक क्षण मे अनुभव होता है। ६१६. मोक्षावस्था का शब्दों में वर्णन करना सम्भव नहीं है, क्योकि
वहाँ शब्दों की प्रवृत्ति नही है। न वहाँ तर्क का ही प्रवेश है, क्योंकि वहाँ मानस-व्यापार सम्भव नही है। मोक्षावस्था संकल्प-विकल्पातीत है। साथ ही समस्त मलकलक से रहित होने से वहाँ ओज भी नहीं है। रागातीत होने के कारण सातवे नरक तक की भूमि का ज्ञान होने पर भी वहाँ किमी प्रकार का खेद नही है।
६१७. जहाँ न दु ख है न सुख, न पीडा है न वाधा, न मरण है न जन्म,
वही निर्वाण है।
६१८. जहाँ न इन्द्रियाँ है न उपसर्ग, न मोह है न विस्मय, न निद्रा है
न तृष्णा और न भूख, वही निर्वाण है ।
६१९. जहाँ न कर्म है न नोकर्म, न चिन्ता है न आर्तरौद्र ध्यान, न धर्म
ध्यान है और न शुक्लध्यान, वही निर्वाण है ।
६२०. वहाँ अर्थात् मुक्तजीवों में केवलज्ञान, केवलदर्शन, केवग्सख,
केवलवीर्य, अरूपता, अस्तित्व और सप्रदेशत्व-ये गुण होता है।
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