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मोक्ष-मार्ग
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५८५. भो भव्य ! तू मोक्ष-मार्ग में ही आत्मा को स्थापित कर ।
उसीका ध्यान कर। उसीका अनुभव कर तथा उसीमें विहार कर । अन्य द्रव्यो मे विहार मत कर।
५८६. मलेखना-रत साधक को मरण-काल में इस लोक और परलोक
मे सखादि के प्राप्त करने की इच्छा का तथा जीने और मरने की इच्छा का त्याग करके अन्तिम साँस तक संसार के अशुभ
परिणाम का चिन्तन करना चाहिए। ५८७. पर-द्रव्य अर्थात् धन-धान्य, परिवार व देहादि में अनुरक्त
होने से दुर्गति होती है और स्व-द्रव्य अर्थात् अपनी आत्मा में लीन होने से सुगति होती है। ऐसा जानकर स्व-द्रव्य में रत रहो और पर-द्रव्य से विरत ।
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