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मोक्ष-मार्ग
१७१ ५३९. स्वभाव की प्रचण्डता, वैर की मजबूत गाँठ, झगड़ालू वृत्ति, धर्म
और दया से शून्यता, दुष्टता, समझाने से भी नहीं मानना, ये कृष्णलेश्या के लक्षण है।
५४०. मन्दता, बुद्धिहीनता, अज्ञान और विषयलोलुपता-ये संक्षेप
मे नीललेश्या के लक्षण हैं।
५४१. जल्दी रुष्ट हो जाना, दूसरों की निन्दा करना, दोष लगाना,
अति शोकाकुल होना, अत्यन्त भयभीत होना-ये कापोतलेश्या के लक्षण है।
५४२. कार्य-अकार्य का ज्ञान, श्रेय-अश्रेय का विवेक, सबके प्रति
समभाव, दया-दान मे प्रवृत्ति--ये पीत या तेजोलेश्या के लक्षण है।
५४३. त्यागशीलता, परिणामों में भद्रता, व्यवहार में प्रामाणिकता,
कार्य में ऋजुता, अपराधियों के प्रति क्षमाशीलता, साधुगुरुजनों की पूजा-सेवा मे तत्परता--ये पद्मलेश्या के
लक्षण है। ५४४. पक्षपात न करना, भोगों का निदान न करना, सबमें
समदर्शी रहना, राग, द्वेप तथा स्नेह से दूर रहनाशुक्ललेश्या के लक्षण है ।
५४५. आत्मपरिणामों में विशुद्धि आने से लेश्या की विशुद्धि होती
है और कपायों की मन्दता से परिणाम विशुद्ध होते हैं।
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