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मोक्ष-मार्ग ५२८. धर्म-श्रवण तथा (उसके प्रति) श्रद्धा हो जाने पर भी संयम
म पुरुषार्थ होना अत्यन्त दुर्लभ है। बहुत-से लोग सयम में अभिरुचि रखते हुए भी उसे सम्यकरूपेण स्वीकार नहीं कर
पाते। ५२९. भावना-योग से शुद्ध आत्मा को जल मे नौका के समान कहा
गया है। जैसे अनुकूल पवन का सहारा पाकर नौका किनारे पर पहुँच जाती है, वैसे ही शुद्ध आत्मा समार के पार पहुँचती
है, जहाँ उसके समस्त दुखों का अन्त हो जाता है । ५३०. अत. बारह अनुप्रेक्षाओं का तथा प्रत्याख्यान, प्रतिक्रमण,
आलोचना एव समावि का वारम्वार चिन्तवन करते रहना चाहिए।
३१. लेश्यासूत्र ५३१. धर्मध्यान से युक्त मुनि के क्रमश विशुद्ध पीत, पद्म और शुक्ल
ये तीन शुभ लेश्याएं होती है। इन लेश्याओं के तीव्र-मन्द के रूप में अनेक प्रकार है।
५३२. कषाय के उदय से अनुरंजित मन-वचन-काय की योग-प्रवृत्ति
को लेश्या कहते है। इन दोनों अर्थात् कषाय और योग का कार्य है चार प्रकार का कर्म-बन्ध । कषाय से कर्मों के स्थिति और अनुभाग बन्ध होते है, योग से प्रकृति और
प्रदेश-बन्ध । ५३३. लेश्याएं छह प्रकार की है~-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोत
लेश्या, तेजोलेश्या (पीतलेश्या), पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या ।
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