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________________ २८. तपसूत्र (अ) बाह्यतप ४३० जहाँ कपायों का निरोध, ब्रह्मचर्य का पालन, जिनपूजन तथा अनगन (आत्मलाभ के लिए) विया जाता है, वह मब तप है । विशेषकर मा अर्थात् भवतजन यही तप करते है। ४४०. तप दो प्रकार का है--वाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य तप छह प्रकार का है । इसी तरह आभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का कहा गया है । ४४१. अनशन, अवमोदर्य (ऊनोद रिका), भिक्षाचर्या, ग्म-परित्याग, कायक्लेश और सलीनता-इस तरह बाह्यतप छह प्रकार का है। ४४२. जो कर्मो की निर्जरा के लिए एक-दो दिन आदिका (यथाात्रित) प्रमाण तय करके आहार का त्याग करता है, उसके अनशन तप होता है । ४४३. जो शास्त्राभ्यास (स्वाध्याय) के लिए अल्प-आहार करते है वे ही आगम में तपस्वी माने गये है। श्रुतविहीन अनशन तप तो केवल भूख का आहार करना है--भूखे मरना है । ४४४. द स्तव में वही अनशन-तप है जिससे मन मे अमंगल की चिन्ता उत्पन्न न हो, इन्द्रियों की हानि (शिथिलता) न हो तथा मन वचन कायस्प योगो की हानि (गिरावट) न हो। - १४१ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
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