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मोक्ष मार्ग
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४१८ जो श्रमण आवश्यक कर्म नहीं करता, वह चारित्र से भ्रष्ट है .. अनः पूर्वोक्त क्रम से आवश्यक अवश्य करना चाहिए ।
४१९, जो निश्चयचारित्रस्वरूप प्रतिक्रमण आदि क्रियाएँ करता है, वह श्रमण वीतराग चारित्र में समुत्थित या आड होता है ।
४२० ( परन्तु ) वचनमय प्रतिक्रमण, वचनमय प्रत्याख्यान वचनमय नियम और वचनमय आलोचना - ये सब तो केवल स्वाध्याय है ( चारित्र नहीं है) ।
४२१. ( अतएव ) यदि करने की शक्ति और सम्भावना हो तो ध्यानमय प्रतिक्रमण आदि कर। इस समय यदि शक्ति नहीं है तो उनकी श्रद्धा करना ही कर्तव्य है- श्रेयस्कर है |
४२२. सामायिक, चतुर्विगति जिन स्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान - ये छह आवश्यक है ।
४२३. तिनके और सोने में, शत्रु और मित्र मे समभाव रखना ही सामायिक है । अर्थात् रागद्वेषरूप अभिष्वगरहित 1 ध्यान या अध्ययन रूप ) उचित प्रवृत्तिप्रधान चित्त को सामायिक कहते है ।
४२४. जो वचन-उच्चारण की क्रिया का परित्याग करके वीतरागभाव से आत्मा का ध्यान करता है, उसके परमममाथि या सामायिक होती है ।
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