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मोक्ष-मार्ग
१२९ ३९९ (भापा-समिति-परायण साधु) किसीके पूछने पर भी अपने
लिए, अन्य के लिए अथवा दोनो के लिए न तो सावध अर्थात् पाप-वचन बोले, न निरर्थक वचन बोले और न मर्मभेदी वचन का प्रयोग करे।
४०० तथा कठोर और प्राणियो का उपघात करनेवाली, चोट
पहचाने वाली भापा भी न बोले। ऐसा सत्य-वचन भी न बोले जिससे पाप का बन्ध होता हो ।
४०१. इसी प्रकार काने को काना, नपुंसक को नपुंसक, व्याधिग्रस्त
को रोगी और चोर को चोर भी न कहे।
४०२ पैशुन्य, हास्य, कर्कश-वचन, परनिन्दा, आत्मप्रशंसा, विकथा
(स्त्री, राज आदि की रसवर्धक या विकारवर्धक कथा) का त्याग करके स्व-पर हितकारी वचन बोलना ही भाषा-समिति है।
४०३ आत्मवान् मुनि ऐसी भाषा बोले जो आँखो देखी बात को कहती
हो, मित (सक्षिात) हो, सन्देहास्पद न हो, स्वर-व्यजन आदि से पूर्ण हो, व्यक्त हो, बोलने पर भी न बोली गयी जैसी अर्थात् सहज हो और उद्वेगरहित हो ।
४०४. मुधादायी-निष्प्रयोजन देनेवाले---दुर्लभ है और मुधाजीवी--
भिक्षा पर जीवन यापन करनेवाले--भी दुर्लभ है। मुधादायी
और मुधाजीवी दोनों ही साक्षात् या परम्परा से सुगति या मोक्ष प्राप्त करते है।
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