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मोक्ष-मार्ग
१२३ ३८०. साधु लेशमात्र भी सग्रह न करे। पक्षी की तरह सग्रह से
निरपेक्ष रहते हुए केवल सयमोपकरण के साथ विचरण करे ।
३८१. सस्तारक, शय्या, आसन और आहार का अतिलाभ होने पर भी
जो अल्प इच्छा रखते हुए अल्प से अपने को सतुष्ट रखता है, अधिक ग्रहण नहीं करता, वह सतोष मे ही प्रधान रूप से
अनुरक्त रहनेवाला साधु पूज्य है । ३८२. सम्पूर्ण परिग्रह से रहित, समरसी साधु को सूर्यास्त के पश्चात्
और सूर्योदय के पूर्व किसी भी प्रकार के आहार आदि की इच्छा मन मे नही लानी चाहिए।
३८३. इस धरती पर ऐसे त्रस और स्थावर सूक्ष्म जीव सदैव व्याप्त
रहते है जो रात्रि के अन्धकार में दिखाई नही पड़ते । अतः ऐसे समय मे साधु के द्वारा आहार की शुद्ध गवेषणा कैसे हो सकती है ?
२६. समिति-गुप्तिसूत्र (अ) अष्ट प्रवचन-माता ३८४. ईर्या, भापा, एपणा, आदान-निक्षेपण और उच्चार (मलमूत्रादि
विसर्जन)--ये पाँच समितियाँ है। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति--ये तीन गुप्तियाँ है ।
३८५. ये आठ प्रवचन-माताएँ हैं। जैसे सावधान माता पुत्र का रक्षण
करती है, वैसे ही सावधानीपूर्वक पालन की गयी ये आठों माताएँ मुनि के सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र का रक्षण करती हैं।
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