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मोक्ष-मार्ग
१११ ३:१. ज्ञान और दर्शन में सम्पन्न सयम और तप में लीन तथा इसी
प्रकार के गुणो से युवत सयमी को ही साधु कहना चाहिए।
६४० केवल सिर मॅडाने से कोई श्रमण नही होता, ओम् का जप करने
से कोई ब्राह्मण नही होता, अरण्य में रहने से कोई मुनि नहीं होता, कुश-चीवर धारण करने से कोई तपस्वी नहीं होता।
३४१. (प्रत्युत) वह समता से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण
होता है, ज्ञान से मुनि होता है और तप से तपस्वी होता है ।
३४२. (कोई भी) गुणों से साधु होता है और अगुणों से असाधु ।
अतः साधु के गुणों को ग्रहण करो और असाधुता का त्याग करो। आत्मा को आत्मा के द्वारा जानते हुए जो राग-द्वेष मे समभाव
रखता है, वही पूज्य है। ३४३ देहादि मे अनुरक्त, विषयासक्त, कषायसयुक्त तथा आत्मस्वभाव
मे सुप्त साधु सम्यक्त्व से शून्य होते है ।
३४४ गोचरी अर्थात् भिक्षा के लिए निकला हुआ साधु कानों से
वहुत-सी अच्छी-बुरी वाते सुनता है और आँखो से वहुत-सी अच्छी-बुरी वस्तुएँ देखता है, किन्तु सब-कुछ देख-मुनकर भी
वह किसीसे कुछ कहता नहीं है। अर्थात् उदासीन रहता है। ३४५ स्वाध्याय और ध्यान मे लीन साधु रात में बहुत नही सोते है ।
सूत्र और अर्थ का चिन्तन करते रहने के कारण वे निद्रा के नश नहीं होते।
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