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मोक्ष-मार्ग
३००. श्रावकधर्म या श्रावकाचार में पाँच व्रत तथा सात शिक्षाव्रत
होते है। जो व्यक्ति इन सबका या इनम से कुछ का आचरण करता है, वह श्रावक कहलाता है।
२३. श्रावकधर्मसूत्र ३०१. जो सम्यग्दृ प्टि व्यक्ति प्रतिदिन यतिजनों से परम सामाचारी
(आचार-विपयक उपदेश) श्रवण करता है, उसे श्रावक कहते है ।
३०२ जिसकी मति सम्यग्दर्शन से विशुद्ध हो गयी है वह व्यक्ति
पाँच उदुम्बर फल (उमर, कठूमर, गूलर, पीपल तथा बड़) के साथ-साथ सात व्यसनों का त्याग करने से दार्शनिक श्रावक कहा जाता है ।
३०३. परस्त्री का सहवास, द्यूत-क्रीडा, मद्य, शिकार, वचन-परुषता,
कठोर दण्ड तथा अर्थ-दूपण (चोरी आदि) ये सात व्यसन हैं।
३०४ मासाहार से दर्प बढता है। दर्प से मनुष्य मे मद्यपान की अभि
लाषा जागती है और तब वह जुआ भी खेलता है। इस प्रकार (एक मासाहार से ही) मनुष्य उक्त वणित सर्व दोषों को प्राप्त हो जाता है।
३०५. लौकिक शास्त्र में भी यह उल्लेख मिलता है कि मांस खाने से
आकाश मे विहार करनेवाला विप्र भूमि पर गिर पड़ा, अर्थात् पतित हो गया। अतएव मांस का सेवन (कदापि) नही करना चाहिए।
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