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मोक्ष-मार्ग
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५५६. जो जीव आत्मा को शुद्ध जानता है वही शुद्ध आत्मा को प्राप्त
करता है और जो आत्मा को अशुद्ध अर्थात् देहादियुक्त जानता है वह अशुद्ध आत्मा को ही प्राप्त होता है ।
२५७. जो अध्यात्म को जानता है वह वाह्य (भौतिक) को जानता है ।
जो वाह्य को जानता है वह अध्यात्म को जानता है। (इस प्रकार वा ह्याभ्यन्तर एक-दूसरे के सहवर्ती है ।)
२५८. जो एक (आत्मा) को जानता है वह सब (जगत् ) को जानता है ।
जो सबको जानता है, वह एक को जानता है ।
२५९. (अतः हे भव्ध ! ) तू इस ज्ञान मे सदा लीन रह । इसीमे
सदा संतुष्ट रह । इसीमे तृप्त हो । इनोगे तुझे उत्तमसुख (परमसुख) प्राप्त होगा।
२६०. जो अर्हन्त भगवान् को द्रव्य-गण-पर्याय की अपेक्षा से (पूर्ण
रूपेण) जानता है, वही आत्मा को जानता है । उसका भोह निश्चय ही विलीन हो जाता है ।
२६१. जैसे कोई व्यक्ति निधि प्राप्त होने पर उसका उपभोग स्वजनो के
बीच करता है, वैसे ही ज्ञानीजन प्राप्त ज्ञान-निधि का उपभाग पर-द्रव्यों से विलग होकर अपने मे ही करता है ।
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