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मुनियों का पत्र विनोबा के नाम
ANU VRAT VIHAR
२१०, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, वीर-निर्वाण तिथि २४-१-२५०१
नयी दिल्ली, दिनांक ७-१२-७४ भद्रररिणामी, धर्मानुरागी श्री आचार्य विनोबाजी,
आपके समभावपूर्ण चिन्तन और सामयिक सुझाव को ध्यान में रखकर 'जैन-धर्म-सार' और उसका नया रूप 'जिणधम्म' की सकलना हुई, उसमें श्री जिनेन्द्रकुमार वर्णीजी और अनेक विद्वानो का योग रहा। सर्व-सेवा-सघ तथा श्री राधाकृष्ण बजाज के अथक परिश्रम और प्रयत्न से सगीति की समायोजना हुई। सर्गति में भाग लेनेवाले सभी आचार्यो मनियो और विद्वानो ने आपके चिन्तन का अनुमोदन किया और ममग्र जैन-समाज सम्मत 'गमणसुत्त' नामक एक ग्रथ की निप्पत्ति हुई, जो भगवान् महावीर के-२५ सौवे निर्वाण-वर्प के अवसर पर एक बडी उपलब्धि के रूप में स्वीकार किया गया। दिनाक २९-३० नवम्बर १९७४ को सगीति हुई. जिसमे यथ का पारायण किया गया। आचार्यो, मुनियो और विद्वानो के परामर्श, समीक्षाएँ और समालोचनात्मक दृष्टिकोण प्राप्त हुए। अन्त में ग्रन्थ के परिशोधन का भार मनियो पर छोड़ा गया और वर्णीजी का योग साथ में रखा गया।
एक सप्ताह की अवधि में मुनियो ने बार-बार बैठकर चिन्तनपूर्वक व्रथ का परिशोधन किया। इसमे हम पूरा सन्तोप हुआ है। अब हम चाहते है कि इस ग्रन्थ का आप गहराई से निरीक्षण करे और धम्मपद की भांति इसके क्रम की योजना करे। और भी जो सुझाव हो, वे आप दे। हम सबको इससे बडी प्रसन्नता होगी।
गीति की विभिन्न बैठको के अध्याग faruननि विद्यानन्दजी
- मुनिश्री मुशीलकुमारजी मुनि जन विजान
(17 - मुनिश्री जनकविजयजी
- मुनिश्री नानजी .
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जिनेन्दृवffजीगन्ध सकलनकता
। हर 12. 1२ 1974 हस्तादार श्री विनोबाजी
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