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________________ ५८. कायसा वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थिसु । दुहओ मलं संचिणइ, सिसुणागु व्व मट्टियं ॥ ३ ॥ ५९. न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइओ, न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा । एक्को सयं पच्चणुहोइ दुक्खं, कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ॥ ४ ॥ ६०. कम्मं चिणंति सवसा, तस्सुदयम्मि उ परव्वसा होंति । रुक्खं दुरुहइ सवसो, विगलइ स परव्वसो तत्तो ॥ ५ ॥ ६१. कम्मवसा खलु जीवा, जीववसाई कहिंचि कम्माई । कत्थइ धणिओ बलवं, धारणिओ कत्थई बलवं ॥ ६ ॥ ६२. कम्मत्तणेण एक्कं, दव्वं भावो त्ति होदि दुविहं दु । पोग्गलपिंडो दव्वं, तस्सत्ती भावकम्मं तु ॥ ७ ॥ ६३. जो इंदियादिविजई, भवीय उवओगमप्पगं झादि । कम्मेहिं सो ण रंजदि, किह तं पाणा अणुचरंति ॥ ८ ॥ ६४-६५. नाणस्सावरणिज्जं, दंसणावरणं तहा । त्रेयणिज्जं तहा मोहं, आउकम्मं तहेव य ॥ ९॥ नामकम्मं च गोयं च, अंतरायं तहेव य । एवमेयाई कम्माई, अटूट्ठेव उ समासओ ॥ १० ॥ ६६. पड - पडिहार- सि-मज्ज, Jain Education International हड - चित्त- कुलाल - भंडगारीणं । जह एएसिं भावा, कम्माण वि जाण तह भावा ॥। ११ ॥ समणसुत्त - भाग ९ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008022
Book TitleSaman suttam Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1993
Total Pages119
LanguagePrakrit, English
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size6 MB
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