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सव्वभूय-प्पभूअस्स, सम्म भूयाई पासओ। पिहिआसवस्स दंतस्स पावं कम्मन बंधइ ॥ ९ ॥ ३ ॥ पढम नाण तओ दया, एवं चिहइ सच-संजए। अभाणी किं काही ? किं, वा नाहीए छेअ-पावग ? ॥ १०॥४॥ सोच्चा जाणइ कल्लाण, सोच्चा जापइ पावर्ग । उभय पिजाणाह सोच्चा, जे (से) समायरे ॥११॥५॥ जो जीवे वि न याणेइ, अजीपे दिन पाणइ । जोवा-जीवे अयाणंतो कह सो नाहीइ संजम ॥ १२ ॥ ६ ॥ जो जीवे वि बियाणेह, अजीवे वि बियाणह । जीवा जोवे बियाणतो सो हु नाहीइ सनम ॥ १३ ॥ ७॥ जया जीवमजीवे य दो वि एए वियाह । तया गई बहुविह सव्वजीवाण जाणा । १४. जया गई बहुविहं सव्वजीवाण जाण । तया पुण्णं च पावंच, बंधमुक्खं च जाणा ॥ १५ ॥ जया पुण्ण च पाच वषं मोक्ख व जाणइ । तया निन्धिदए भोए जे दिव्वे जे भ माणुसे ।। १६ ॥ जया निव्वदए भोए जे दिवे जे अ माणुसे। तया चयइ संजोग, समितर-बाहिर ॥१७॥ जया चयइ संजोग, सम्भितर-बाहिर।
यो मुंडे भवित्ताण पव्वइए अणगारियं ॥१८॥ जया मुंडे भवित्ताण पन्चाए अणुमारिन। त्या संवरमुकिट्ठ, धम्म फासे अपचर ॥१९॥
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