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________________ अग्निमें, जल जलमें, वायु वायुमे, चेतना समाप्त। बच्चे लोग जब अपनल धोती सुखाते है तो ऐसा बोलते है कि कुवांका पानी कुवांमें जाय, तलाका पानी तलामें जाय, ऐसा काम बच्चे लोग कलासहित करते है। सीधे काम करनेकी उनकी प्रकृति नही है। तो जैसे उन बच्चोका मंतव्य है कि हमारी धोती में तलाका पानी चिपका है जिससे गीली है तो तलाका पानी तलामें चला जाय ऐसे ही इस चारूवाक बच्चेका यह मंतव्य है कि इस मुझमें जो अंश जहाँका हो पृथ्वी तत्व, जल तत्व जो मुझमें शामिल हो वे तत्व बिखर जायेगे तो आत्मा मिट गया। कितने ही लोग मरना चाहते है और कितने ही लोग जीना चाहते है। कुछ सुख भरी जिन्दगी हो तो जीना अच्छा है और क्लेशकारी जिन्दगी हो तो मरना अच्छा है। उनका जीना भी मुफ्त है और मरनाभी मुफ्त है अर्थात् मरकर भी कुछ न रहेगा। अत्यय शब्दका भाव - विनाशवादी लोग इस आत्माका अस्तित्व नही मानते है। वे जानते है कि गर्भ से लेकर मरेने तक ही यह जीव है आगे यह जीव नही है। इस मंतव्यका खण्डन करने के लिए इस श्लोकमें निरत्ययः शब्द दिया है। आत्माकी जानकारी के लिए यह 5 विशेषणोंका विवरण चल रहा है। जिससे तीसरा विशेषण है निरत्ययः । आत्मा अविनाशी है। अत्यय का अर्थ है अतिकान्त हो गया है अय मायने आना जहाँ याने अत्यय अभाव को कहते है। अत्यय न हुआ जहाँ उसका नाम है निरत्ययः। लोग निरत्ययः का अर्थ सीधा नष्ट हो जाना कह देते है। ठीक है, निरत्ययका अर्थ है नष्ट होना। किन्तु नष्ट होने मे होता क्या है? तो नष्ट होनेका यह अत्यय जो नाम है उसमे यह मर्म पड़ा है कि इसमें अब परिणमन न होगा। जब तक परिणमन है तब तक पदार्थ है। जब परिणमन ही न हो तो पदार्थ ही कहाँ रहेगा? न हो परिणमन तो मूलसे नाश हो गया। यह कठोर शब्द है अत्यय। विनाश शब्दके जितने पर्यायवाची शब्द है उन सबमें यह बड़ा कठोर शब्द है। विलय शब्द का भाव - विनाशका पर्यायवाची शब्द विलय है, किन्तु विलय शब्द कठोर नही है। पर्यायका विलय हो गया अर्थात् पर्याय विलीन हो गयी। पर्याय द्रव्यमें समा गयी- इसका कुछ सत्वरखा, कठोरता नही वर्ती, और होता भी यही है विनाशमें कि नवीन पर्याय द्रवयमें विलीन हो जाती है। जैसे एक बुढिया रहटा कातती थी। उसका तकुवा टेढ़ा हो गया तो उसे लेकर वह लोहारके पास पहुंची, बोली कि इस तकुवाकी टेढ़ निकाल दोगे? बोला हाँ निकाल देंगे, दो टके (चार पैसे) लेंगे। ठीक है। लोहारने उसे सीधा कर दिया, टेढ़ निकल गयी। तो जब लोहार उसे देने लगा तो कहा कि अब लावा 2 टके पैसे। तो बुढ़िया बोली कि तुमने जो इस तकुवेकी टेढ निकाली है वह हमारे हाथमें दे दो तब अपने टके ले लो। अब लोहार बड़ा हैरान हुआ। सोचा कि कैसे इस तकुवेकी टेढ़को इसके हाथ में दे दे? हाँ वह ऐसा कर सकता है कि उस तकुवेको फिर टेढ़ा कर दे। सोचा कि इस तकुवेके टेढ़ा करनेमें हैरान भी हो मो भी यह हमारे दो टके न देगी। तो जैसे वहाँ यह 85
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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