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चाहे को सताकर अपने मनको खुश कर लो, जिस स्त्री या पुरूष के प्रति कामवासना उत्पन्न हो, और-और भी पाप कार्य कर लो, केवल एक दो मिनट ही तो वह पाप कार्य करता है किन्तु उन पापों के करने के कारण जो द्रव्यकर्म बंध है वे जीव के साथ अनगिनते वर्ष तक रहेंगे।
क्षणिक गलती से असंख्याते वर्षों तक क्लेश भोग- आगम में बताया गया है कि कोई मन वाला पुरूष जिसके विशेष समझ उत्पन्न हुई है वह मोह करेगा, गडबड़ी करेगा तो उस तीव्रमोह में 70 कोड़ाकोड़ी सागर तक के लिए कर्म बँध जाते है। अभी बतावेगे कि कोड़ा-कोड़ा सागर क्या चीज होती है। कर्म इस लोक में बहुत सूक्ष्म कार्माण मैटर है। वह कार्माण स्कंध के नाम से प्रसिद्ध है।वह सब जगह भरा है, और इस मोही मलिन जीव के साथ तो बहुत सा सूक्ष्म मैटर साथ लगा रहता है जो इसके लिए सदा तैयार है। यह जीव कुछ मलिन परिणाम तो करे कि कर्म रूप बन जायेगें, जिसे विनसोपचय कहते है। ये कर्म रूप बनेगें तो 70 कोड़ाकोड़ी सागर तक के लिए भी बँध जाते है। इसका अर्थ यह हुआ कि कुछ वर्षों के बाद वे कर्म जब उदय में आतें है तो अनगिनतें वर्षों तक उदय में आ आकर इस जीव को क्लेश के कारण बनते है।
सागर का प्रमाण - सागर का समय बहुत लम्बा समय है। यह गिनती में नही बताया जा सकता है। जिस चीज को गिनती में बताया ही न जा सके उसको किसी उपमा द्वारा बताया जायगा। कल्पना करो कि 2 हजार कोश का कोई लम्बा चौड़ा गड्ढा है। सब कल्पना पर बात चलेगी, न कोई ऐसा कर सकता है। न किया जा सकेगा। पंरतु इतना लम्बा समय कितना है इसका परिज्ञान करने के लिए एक उपमारूप में बताया गया है। उस विशाल गड्ढे में छोटे-छोटे रोम खण्ड जिनका दूसरा खण्ड किया न जा सके, भर दिया जाय ठसकर और मानो उस पर हाथी फिरा दिया जाय, फिर उन बालो को सौ-सौ वर्ष बाद एक-एक टुकड़ी निकाला जाय, सब यह उपमा की बात है, जितने वर्षों में वे सब बाल निकल सकेंगे उसका नाम है व्यवहारपल्य। उससे असंख्यातगुणा समय लगता है उद्वारपल्य में, उससे असंख्यात गुणा समय लगता है अद्वापल्य में। एक करोड़ अद्वापल्य में एक करोड़ अद्वापल्य का गुणा करें उसका नाम है एक कोड़ाकोड़ी अद्वापल्य। ऐसे 10 कोड़कोड़ी पल्यो का एक सागर बनता है। एक सागर में एक करोड़ सागर का गुणा करो तब तक कोड़ाकोड़ी सागर होता है। यों 70 कोड़ाकोड़ी सागर तक ये द्रव्यकर्म इस जीव को जकड़ डालते है।
दुर्लभ मनुष्यजन्म का अवसर – यह मनुष्य कैसी-कैसी कुयोनियो को भोग-भोगकर आज प्राप्त किया है। जरा दृष्टि तो डालो - अन्य जीवों की अपेक्षा मनुष्य जीवन कितना श्रेष्ठ है। वृक्ष, पृथ्वी, इन जीवो की जिन्दगी क्या जिन्दगी है? कीड़ा मकोड़ा भी क्या मल्य रखते है लोग जूतो से कुचलते हुए चले जाते है, उनका कुछ भी मूल्य नही समझते। पशु
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