________________
किसी दूसरे का कुछ करता नही हूँ। सुख दुःख जीवन मरण सब कुछ इस जीवके अकेले ही अकेले चलते है। कोई किसी का शरण अथवा साथी नही है। जब वस्तु में इतनी सवतंत्रता पड़ी हुई है फिर भी कोई व्यामोही पुरूष माने कि शरीर मेरा है, यह मेरा है, इस प्रकार का भिन्न द्रव्य स्वामित्व माने तो उसके साथ यह शरीर सदा लगा रहेगा अर्थात् वह संसार में भ्रमण करता रहेगा। जीव के प्रतिबोध के लिए प्रत्येक मिथ्या वासनाए हट जानी चाहिये।
क्लेशमूल तीन अवगुण - एक तो परपदार्थ में अपना स्वामित्व मानना और दूसरे परपदार्थो का अपको कर्ता समझना, अपने आपको परपदार्थो को भोगने वाला समझना। देखिये ये तीनो ऐब संसारी प्राणी में भरे पड़े हुए है। इन तीनो में से एक भी कम हो तो वे तीनो ही कम हो जायेगे। मोह में परजीवो के प्रति कितना तीव्र स्वामित्व का भाव लगा है, ये ही मेरे है। जो कुछ कमाना है, जो कुछ श्रम करना है केवल इनके खातिर करना है। बाकी जगत के अन्य जीवों के प्रति कुछ भी सोच विचार नही है। कर्तृत्व बु, भी ऐसी लगी है कि इन बच्चो को मैने ही पाला, मैने ही अमुक काम किया, ऐसी कर्तृत्वबुद्वि भी लगी है, पर परमार्थतः कोई जीव दूसरे पदार्थ का कुछ कर सकने वाला नही है। यह मिथ्या भ्रम है कि कोई अन्य किसी का कुछ कर सके, अथवा किसी की गल्ती से किसी दूसरे को नुकसान सहना पड़ता है। जो भी जीव दुःखी होते है वे अपनी कल्पना से दुःखी होते है, किसी को दुःखी करने की सामर्थ्य किसी में भी नही है।
कर्तृत्व के भ्रम पर एक दृष्टान्त – एक सेठ था, उसके चार लड़के थे। बड़ा लड़का कमाऊ था, उससे छोटा जुवारी था, उससे छोटा अंधा और सबसे छोटा पुजारी था। बड़े लड़के की स्त्री रोज-रोज हैरान करे कि देखो तुम सारी कमाई करते हो, दुकान चलाते हो और ये सब खाते है। तुम न्यारे हो जावो तो जितना कमाते हो सब अपने घर में रहेगा। बहुत दिनों तक कहासुनी चलती रही। एक बार सेट से बोला बड़ा लड़का कि पिताजी अब हम न्यारे होना चाहते है। तो सेठ बोला कि कुछ हर्ज नही बेटा, न्यारे हो जाना, पर एक बार सब लोग मिलकर तीर्थयात्रा कर लो। न्यारे हो जाने पर न जाने किसका कैसा भाग्य है? सो चल सब यात्रा के लिए। रास्ते में एक नगर बगीचे मे अपना डेरा डाल दिया और चार पांच दिन के लिए बस गए। पहिले दिन सेठ ने बड़े लड़के को 10 रू देकर कहा कि जावो सबके खाने के लिए सामान लिए सामान ले आवो वह सोचता है कि 10 रू में हम तीस, बत्तीस आदमियों के खाने को क्या लाँ, सो उसने किसी बाजार से कोई चीज खरीदी और पास के बाजार में जाकर बेच दी तो 1 ) मुनाफा मिला। अब 11) का सामान लेकर वह आया और सबको भोजन कराया। दूसरे दिन दूसरे, जुवारी लड़के को 10) देकर भेजा, कहा बाजार से 10) की भोजन सामग्री ले आवो। वह चला 10) लेकर। सोचता है कि इतने का क्या लाएँ? तीस बत्तीस आदमियों के खाने के लिए, सो वह जुवारियों के पास पहुंचा
205