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थाली में रात के समय चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पड़ रहा हो तो बालक उस प्रतिबिम्ब को उठाकर अपनी जेब में रखना चाहता है, पर ऐसा होता कहाँ है। तब वह दुःखी होता है।
पर की हठ का क्लेश – एक बालक ने ऐसा हठ किया कि हमें तो हाथी चाहिए तो बाप न पास के किसी बड़े घर के पुरूष से निवेदन करके हाथी घर के सामने बुला लिया। अब लड़के के सामने हाथी तो आ गया, पर वह हठ कर गया कि मुझे तो यह हाथी खरीद दो। तो उसके घर के बाड़े में वह हाथी खड़ा करवा दिया और कहा, लो बेंटा यह हाथी तुम्हे खरीद दिया है, इतने पर भी वह राजी न हुआ, बोला कि इस हाथी को हमारी जेब मे धर दो । अब बतावो हाथी को कौन जेब में धर देगा? जो बात हो नही सकती उस बात पर हठ की जाय तो उसका फल केवल क्लेश ही है। जो बात हो सकती है, जो बात होने योग्य हो, जिस बात के होने में अपनी भलाई हो उस घटना से प्रीति करना यह तो हितकर बात है, पर अनहोनी को होनी बनाने की हठ सुखदायी नही होती है। ज्ञानी पुरूष तो अपने आपको जैसा चाहें बना सकते है, इस निर्णय के कारण अपने पर ही प्रयोग करते है। किसी परवस्तु में किसी प्रकार की हठ नही करते है। इस कारण ये अध्यात्मयोगी सदा अंतः प्रसन्न रहा करते है।
किमिदं कीदृशं कस्य कस्मात्क्वेत्यविशेषयन।
स्वदेहमपि नावैति योगी योगपरायणः ।।42|| एकान्त अन्तस्तत्व की उपलब्धि - कुछ पूर्व के श्लोको में यह दशार्या था कि जो लोक में उत्तम तत्व है, सारभूत वस्तु हे वह निज एकान्त में ही प्रकट होती है। निज एकान्त का अर्थ है जिस चित्त में रागद्वेष का क्षोभ नही है। ऐसे सर्व विविक्त एक इस धर्मी आत्मा में ही उस तत्व का उद्भव होता है। जो लोक में सर्वोतम और शरणभूत है अपने आप में ही वह तत्व है जिसके दर्शन होने पर संसार के समस्त संकट टल जाते है। एक इस अंतस्तत्व के मिले बिना चाहे कितनी ही सम्पदा का संचय हो जाय किन्तु संसार के संकट दूर नही हो सकते है जिसको बाहा पदार्थो की चाह है उस पर ही संकट है और जिसे किसी प्रकार की वाञछा नही है वहाँ कोई संकट नही है।
ज्ञानी के अन्तरंग में साहस - ज्ञानी पुरूष में इतना महान साहस होता है कि कैसी भी परिस्थिति आए सर्व परिस्थितियों में मेरा कही भी रंच बिगाड़ नही है। अरे लोक विभूति के कम होने से अथवा न होने से इन मायामय पुरूषो ने तो कुछ सम्मान न किया , अथवा कुछ निन्दा भरी बात कह दी तो इसमें मेरा क्या नुक्सान हो गया? मैं तो आनन्दमय ज्ञानस्वरूप तत्व हूं, ऐसा निर्णय करके ज्ञानी के अंतः में महान् साहस होता है। जिस तत्व के दर्शन में यह साहस और संकटो का विनाश हो जाता है, उस तत्व के दर्शन के लिए, उस तत्व के अभ्यास के लिए अनुरोध किया गया था।
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