________________
यथा यथा समायति संवित्तौ तत्वमुत्तमम् ।
अपने उपयोग में जैसे-जैसे यह आत्मतत्व विकसित
तथा तथा न रोचन्ते विषयाः सुलभा अपि । 137 ।। ज्ञान से विषयो में अरूचि होता जाता है वैसे ही वैसे ये सुलभ भी विषय रूचिकर नही होते है । जब सहज शुद्व अंतस्तत्व के उपयोग से एक आनन्द झरता है तो उस आनन्द से तृप्त हो चुकने वाले प्राणियो को सुलभ भी विषय, सामने मौजूद भी विषय रूचिकर नही होता है। जब तक अपने स्वभाव को बोध न हो तब तक विषयों में प्रीति जगती है। जब कोई पदार्थ है तो उस पदार्थ का कुछ स्वरूप हो सकता है, उसे कहते है सहजस्वरूप । इस आत्मा का आत्मा की स्वरूप सत्ता के कारण क्या स्वरूप हो सकता है उसका नाम है सहज स्वरूप । यह उत्तम तत्व जिसके ज्ञान में समाया है उसे सुलभ भी विषय रूचिकर नही होते।
नैमित्तिक भाव में स्वरूपता का अभाव जो किसी परद्रव्य के सम्बन्ध से इस आत्मा की बात बनती है वह आत्मा में होकर भी आत्मा का स्वरूप नही है। जैसे दृष्टान्त में दखिये कि अग्नि के सम्बन्ध से पानी में गर्मी आने पर भी पानी का स्वरूप गर्मी नही है। यद्यपि उस पानी को कोई पी ले तो मुँह जल जायगा गर्मी अवश्य है और वही गर्मी पानी I में तन्मय है, इतने पर भी पानी का स्वरूप गर्म नही कहा जा सकता है। इस ही प्रकार कर्मों के उदयवश अपने उपयोग की भ्रमणा चल रही है, रागादिक भाव उत्पन्न होते है, ये रागादिक आत्मा के ही परिणमन है, इतने पर भी ये रागादिक आत्मा के स्वरूप नही बन जाते है इतनी बात की खबर जिसे है उसने अपना मनुष्य जन्म सार्थक कर लिया है। शेष जो कुछ भी समागम मिला है वे सर्व समागम इस आत्मा के भले के लिए नहीं है, ये छूटेगें और जब तक साथ है तब तक भी क्या यह जीव चैन से रह सकता है ?
स्व की विश्वास्यता भैया! इन समागमों में रंच भी विश्वास न करो और यह विश्वास करो कि मेरे ही स्वरूप के कारण मेरा जो स्वभाव है बस वही मेरा शरण है, वही मरो रक्षक है। उसमें स्वंय आनन्द भरा हुआ है । ऐसे इसे सहज ज्ञानानन्दस्वरूप की जिन्हे सुध रहती है और इस स्वरूप के अनुभव से जो शुद्ध आनन्द का अनुभव जगा है उसके कारण इस ज्ञानी को ये सुलभ विषय भी रूचिकर नही होते है ।
परिस्थितिवश विषय में अरूचि से एक अनुमान अब जरा इस तरह भी अनुमान कर लो। जब किसी कामी पुरूष को कामविषयक वासना का विकल्प चलता है तो उसे जात कुजात अथवा किसी ही वर्ण का रूप हो, सब सुन्दर और रमणीक जंचता है, और यही उपयोग जब ज्ञानवासना को लिए हुए हो और यहाँ अतः प्रसन्नता धार्मिक जग रही हो तो सुन्दर से भी सुनदर रूप हाड़ माँस का पिञ्चर है, इस प्रकार दीखा करता है और भी दृष्टान्त देखो
जब भोजन करने मे आसक्ति का परिणाम हो रहा हो उस समय भोजन कितना स्वादिष्ट और सरस सुखदायी मालूम होता है ? जब उपयोग बदला हो, किसी बाह
158