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________________ क्लेश न हो? संसार में है कुछ ऐसा जो लोग देश के नेता हो जाते है अथव ऊँचे अधिकारी हो जाते है उनके भी संकटो को देख लो, वे कितनी बेचैनी मं रहते है । सेसार की किसी भी दश्ज्ञा में चैन नही है। ऐसा जानकर अपने को यों ही समझो कि जब यह संसार की दशा है तो इसमें ऐसा होना ही है । दुःख आयें तो उनमें क्या घबडाना ? कष्ट में यथार्थ सुध से कष्ट सहिष्णुता का लाभ - एक कोई सेठ था, उसे किसी अपराध में जेल कर दी गयी। अब जेल में तो चक्की पीसनी पड़ती है। जेल में उस सेठ को सब कुछ करना पड़े तो सेठ सोचता है कि कहाँ तो मै गद्दा तक्की पर बैठा रहा करता था, आज इतने काम करने पडते है । वह बहुत दुःखी हो रहे। इसी तरह सोच-सोचकर वह सदा दुःखी रहा करे। तो एक कोई समझदार कैदी था, उसने समझाया कि सेठ जी यह बतावो कि इस समय तुम कहाँ हो? बोला जेल मे । तो जेल में और घर में कुछ अन्तर है क्या ? हाँ अन्तर है। यहाँ जेल में सब कुछ करना पड़ता है और वहाँ आराम भोगना होता है। तो सेठ जी अब वहाँ का नाता न समझो, अब अपने को यहाँ सेठ न समझो। यह तो जेल है, ससुराल नही है। जेल में तो ऐसा ही काम करना होता है। समझ में कुछ लगा और उसे दुःख कम हो गया। ऐसे ही कितने ही संकट आये, यह समझो कि यह संसार तो संकट से भरा हुआ है। यहाँ तो संकट मिला ही करते है। इतनी भर समझ होने पर सब संकट हल्के हो जाते है । और जहाँ यह जाना कि यह आया मुझ पर संकट तो इस प्रकार की अनुभूति से संकट बढ़ जाते है । संकट मुक्ति का उपाय - समस्त संकटो के मेटने का उपाय क्या है? लोग बहुत उपाय कर रहे हैं संकट मेटने का कोई धन कमाकर कोई परिवार जोड़कर, कोई कुछ करके, किन्तु जैसे ये प्रयत्न बढ़ रहे है वैसे ही दुःख और बढ़ते जा रहे है। सच बात तो यह है कि संकट मेटने का उपाय बाह्रा वस्तु का उपयोग नही है । अपना मुख्य काम है अपने को ज्ञान और आनन्दस्वरूप मानना । यह शरीर भी मै नही हूँ-ये विचार विकल्प जो कुछ मन में भरे हुए है। ये भी मै नही हूं मैं केवल ज्ञानानन्दस्वरूप हूं। इस प्रकार अपने आपकी प्रतीति हो तो शान्ति का मार्ग मिलेगा। बाह्रा पदार्थो का उपयोग होने से आनन्द नही मिल सकता है। आनन्द विकास के पथ में व्यवहार और निश्चय पद्वति उस यथार्थ आनन्द को प्रकट करने के लिए दो पद्वतियो को लिया जाना चाहिए- एक व्यवहार पद्वति और एक निश्चय पद्वति। जैसे हिंसा झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह का त्याग कर देते है, और भी मन, वचन, कायकी शुभ प्रवृत्तियाँ कर रहे है ये सब व्यवहार पद्वति की बातें है । निश्चय पद्वति में अपने आपके सहजस्वरूप का ही अवलोकन है। इन दो बातो में से उत्कृष्ट बात अपने आत्मा के सहज स्वभाव के परख की है, इसमें जो अपना परिणाम लगाते है। उन्हे जब मोक्ष मिल जाता है इन परिणामो से तो इससे स्वर्ग मिल जाय तो यह आश्चर्य की बात नही है। जो मनुष्य किसी भार को अपनी इच्छा से, बहुत ही सुगमता और शीघ्रता से दो कोश तक ले जाता है वह उस भार को आधा कोश ले जाने में क्या खेद मानता है? वह तो उस आधा कोश को गिनती में ही नहीं लेता है, शीघ्र उस भार को ले जाता है। यों ही 11 —
SR No.007871
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSahajanand Maharaj
PublisherSahajanand Shastramala Merath
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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