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पुरूष ने भी तो केलों पर, बासो पर शस्त्र से प्रहार किया, पर उसके तो धूल चिपकी हुई नही देखी जाती। अरे उस पुरूष ने तेल लगाया है इसलिए उसका शरीर धूल से लथपथ हो गया है और दूसरे ने तेल नही लगाया है इस कारण वह धूल से लथपथ नही हुआ है। क्रियाये सब जानते है कि शरीर में स्नेह लगा है स्नेह नाम तेल का है, चिकनाई लगी है उस कारण उसे धूल का बंध हो गया है।
कर्मव्याप्त लोक निवास कर्म बन्ध का आकरण - संसारी प्राणियो की भी अपने अध्यवसान के कारण दुर्दशा है। ये संसारी प्राणी इस शरीर से मन, वचन, काय की क्रियाएं करके और इन क्रियाओ के द्वारा जीवघात करके कर्मो से लिप रहे है, ऐसी स्थिति में कोई कारण पूछे कि यह जीव कार्मे से क्यों लिप गया है ? तो कोई एक उत्तर देता है कि कर्मो से भरा हुआ लोक है ना, वह तब कर्म न बाँधे तो क्या होगा? लेकिन यह बात नही है। यह बताओ कि इस समय सिद्व भगवान कहाँ बिराजे है? इस लोक के भीतर या लोग के बाहर या लोक के अंत में है? लोक के बाहर केवल आकाश ही आकाश है, न वहाँ जीव है, न पुदगल है न धर्म अधर्म है, न काल है। इस लोक में सर्वत्र कार्माणवर्गणायें बसी हुई है, जहाँ सित जीव बिराजे है वहाँ पर भी ठसाठस अनन्त कार्माणवर्गणाएँ है और केवल कार्माणवर्गणा ही नही, वहाँ अनन्त निगोदिया जीव भी है, जो निगोदिया जीव इस जगत के निगोदियो की तरह ही दुःखी है, एक स्वांस में 18 बार जन्म और मरण करते है उन निगोदियो में और सिद्ध भगवान की जगह में रहने वाले सूक्ष्म निगोदियो में दुःख का कोई अन्तर नही है, वे लोक में दुःखी है व सिद्ध वहाँ सुखी है। इसलिए लोकबन्धन का कारण नही है अथवा मुक्ति का कारण नही है।
मन वचन काय का परिस्पन्द कर्मबन्ध का अकारण - तब दूसरा कोई बोला कि वहा ये जीव मन, वचन काय की चेष्टाएँ करते है उससे बंध होता है तो जरा यह बतलाओ कि जो चार घातिया कर्मों का नाश करके अरहंत हुए है उन अरंहतो के क्या वचनवर्गणाये नही निकलती? दिव्य ध्वनि जो खिरती है उन अरहंत भगवान के क्या शरीर की चेष्टाएँ नही होती? वे भी बिहार करते है, उनके शरीर में जो द्रव्यमन रचा हुआ है क्या उस द्रव्यमन में कोई क्रिया नही होती ? होती ही है। उनके भी मनोयोग, वचनयोग और काययोग तीन योग पाये जाते है, वे सयोग केवली कहलाते है। अभी उनके तीनो योग है। दो मनोयोग है दो वचन योग है- औदारिका काययोग, औदारिक मिश्रकाययोग, कार्माणकाययोग। ये तीन काय योग है, यो 7 योग माने गये है सयोगकेवली के। मन, वचन, कायकी चेष्टा उनके भी हो रही है, पर क्या कर्मबन्धन है? नही । इनके मन, वचन, काय की चेष्टा से कर्मबन्धन नही होता। अतः मन, वचन, काय की चेष्टा कर्मबन्ध का कारण नही है।
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