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अप्रमाद सूत्र
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सलार में जो धन जन आदि पदार्थ है, उन सब को पाशरूप जानवर सुसु को वढी सावधानी से फूंक फूंक कर पाँच, रखना चाहिये। दतक शरीर सरपत है, स्वतक उसका उपयोग अधिक से अधिक लयम- धर्म की साधना के लिए कर लेना चाहिए। बाद मे जब वह बिलकुल हो शक हो जाये तब बिना किसी मोह
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ममता के मिट्टी के ढेले के समान उमत त्याग कर देना चाहिए ।
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जिस प्रकार शिक्षित (सधा हुआ ) तथा कवचधारी घोड़ा युद्ध ने विजय प्राप्त करता है, उसी तर विवेकी मुसुल भी जीवनसत्राम में विजनी होम् नोक्ष प्राप्त करता है । जो मुनिः दीर्घकाल तक श्रप्रमत्तरूप में संयम वर्ग का श्राचरण करता है, वह शीघ्रातिशोध मोक्ष-पद पाता है ।
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शाश्वत चादी लोग कल्पना दिया करते है कि 'सत्कर्म-साधना की भी क्या जल्दी है, आगे कर लेगे । परन्तु चो करते-करते भोग-विलास में हो उनका जीवन समाप्त हो जात है, और एक दिन मृत्यु सामने था खटी होती है, शरीर नष्ट हो जाता } श्रन्तित समय में कुछ भी नही बन पाता, उस समय तो मूर्ख मनुष्य के भाग्य में कवन्न पचताना ही शेप रहना है ।