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________________ महावीरवाणीना प्रचार माटे पोतानो अंगत अभिप्राय पण दर्शावेल छे. आथी खास आशा बंधाय छे के तटस्थ डॉ. भगवानदासजीनां वचनोनी जैन समाज जरूर कदर करशे. महावीरवाणी प्रत्ये डॉक्टर महाशयनी लागणी बदल अहीं हुं तेमनो पण सविशेष.आभार मार्नु छु. १९४२ थी १९५३ सुधीमां भूळ अने अनुवाद साथेनी महावीरवाणीनी प्रण आवृत्तिओ थई गणाय अने जो तेमां केवळ हिंदी अनुवादवाळी आवृत्तिने मेळवीए तो चार आवृत्तिओ पण थई गणाय. आम एकंदर चार वर्षना गाळामां आ पुस्तकनी सात हजार नकलो प्रजामा पहोंची कहेवाय. __आवा विषम समयमां ज्यां अहिंसा अने सत्यना मार्ग तरफ प्रजानां मन डगमगतां देखाय छे अने ज्यारे लोको-भगवान महावीरना अनुयायी लोको पण त्यांसुधी य भानवा लाग्या छे के व्यवहारमा सत्य अने अहिंसानो मार्ग नहीं ज चाली शके, ए तो मंदिरमा के सभामां बोली बताववानो मार्ग छे. एवे कपरे काळे आ पुस्तकनी सात हजार नकलो बार वर्षनायगाळामांगई ते पुस्तकनुं अहोभाग्य जकहेवाय. सौथी प्रथम आवृत्ति वखते भाई मानमलजी गोलेच्छा (जोधपुर-खीचनवाळा) ए आर्थिक सहायता [१ ]
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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