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चतुरङ्गीय-सूत्र
(८७)
संसार मे जीवो को इन चार श्रेष्ठ श्रद्धों ( जोवन-विकाम के साधनों ) का प्राप्त होना बढ़ा दुर्लभ है :
मनुष्यश्व, धर्मश्रवण, धदा और संयम में पुरुषार्थं ।
(55)
कभी वह त्रिय होता है और कभी चारदाळ, कभी वर्ण-मंकर---बुक्कस, कभी कोड़ा, कभी पतन, कभी कुंथुश्रा, वो कभी चोरी होता है। F
( 2 )
पाप-कर्म करनेवाले प्राणो इस भाँति हमेशा बदलतो रहने वाली योनियों में वारम्बार पैदा होते रहते हैं, किंतु इस दु.खपू ससार से कभी खिन्न नहीं होते, जैसे दुःखपूर्ण राज्य से क्षत्रिय । ( ६० )
जो प्राणी काम वासनाथो से विमृव है, ये भयङ्कर दुःख तथा चैत्रमा भोगते हुए चिरकाञ्च तक मनुन्चेतर योनियों में भरते रहते हैं ।