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भरात्रि-भोजन-सूत्र
(६८) अन्न धादि चारों ही प्रकार के थाहार का राधि में सेवन नहीं करना चाहिए । इतना ही नहीं, दूपरे दिन के लिए भी रात्रि में खाद्य सामग्री का सहयह करना निषिद्ध है। प्रत. भरात्रिभोजन वास्तव में बड़ा दुष्कर है।
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हिंसा, झूट, चोरो, मैथुन, परिग्रह और राग्नि भोजन-जो जीव इनसे विरत (पृथक) रहता है, वह श्रनाम्नवा (आत्मा में पाप-कर्म के प्रविष्ट होने के द्वार प्रास्रव कहलाते हैं, उनसे रहित श्रमानव) हो जाता है।