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________________ महावीर-बाणी (५१) जैसे बहुत ज्यादा इंधनवाले जाल में पचन से उचे नित दावाग्नि शान्ट नहीं होती, उसी तरह मादा से अधिक भोजन करनेवाले ब्रह्मचारी को इंद्रियाग्नि भी शान्त नहीं होती । अधिक मोजन किसी को मी हितर नहीं होता । (५२) ब्रह्मचर्य-रत भिनु को श्रृंगार के लिए, शरीर की शोमा और सजावट का कोई भी अजागे काम नहीं करना चाहिये। (३) ब्रह्मचारी भिक्षु को शब्द, रूप, गन्ध, रम और स्पर्श-इन पाँच प्रकार के काम-गुणों को सदा के लिये छोड़ देना चाहिये । स्थिर चित्त मिधु, दुर्जय काम-गोगों को हमेशा के लिए छोड दे। इतना ही नहीं, जिनसे ब्रह्मचर्य में तनिक भी क्षति पहुँचनेकी सम्भावना हो, उन सब शबा-स्थानों का.भी उसे, परित्याग कर देना चाहिए।
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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