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ब्रह्मचर्य-सूत्र
( ४२ )
श्रम तपस्वी स्त्रियों के रूप, लावण्य, विलास, हास्य, मधुरवचन, संकेत- चेप्टा, हाव-भाव और कटाक्ष आदि का मनसे तनिक भी विचार न लाये, और न इन्हें देखने का कभी प्रयत्न करे ।
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( ४३ )
स्त्रियों को राग- पूर्वक देखना उनकी अभिलाषा करना, उनका चिन्तन करना, उनका कोर्तन करना, यादि कार्य ब्रह्मचारी पुरुष को कदापि नहीं करने चाहिए । ब्रह्मचर्य व्रत में सदा रत रहने को इच्छा रखनेवाले पुरुषों के लिए यह नियम अत्यन्त हितकर है, और उत्तम ध्यान प्राप्त करने में सहायक है ।
( ४४ )
ब्रह्मचर्य में अनुरक्त भिक्षु को मनमें वैविक यानन्द पैदा करनेवाली तथा काम-भोग की व्यासक्ति बढ़ानेवाली स्त्री-कथा को छोड़ देना चाहिए |
( ४५ )
ब्रह्मचर्य-रत भिक्षु को स्त्रियों के साथ बात-चीत करना और उनसे बार-बार परिचय प्राप्त करना सदा के लिए छोड़ देना चाहिये ।