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सत्य-मूत्र
(२१)
सदा अ-प्रमादी और सावधान रहेकर, असत्य को त्याग कर, हितकारो सत्य वचन ही बोलना चाहिए। इस तरह सत्य बोचना बड़ा कठिन होता है।
(२२) अपने स्वार्थ के लिए अथवा दूसरों के लिए क्रोध से अथवा भय से-किसी भी प्रसंग पर दूसरों को पीड़ा पहुँचानेवाला असत्य वचन न तो स्वयं योलना, न दूसरों से खुलवाना चाहिए।
(२३) मृपावाद (असत्य) संसार में सभी सरपुरुषों द्वारा निन्दित उपराया गया है और सभी प्राणियों को अविश्वसनीय है। , इसलिए सूधाबाद सर्वथा छोड़ देना चाहिए ।
अपने स्वार्थ के लिए, अथवा दूसरों के लिए, दोनों में से - किसी के भी लिए, पूछने पर पाप-युक्त, निरर्थक एवं मझेदक वचन नहीं बोलना चाहिए।
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