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अहिंसा-सूत्र
सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। इसीलिए निग्रन्थ (जैन मुनि) घोर प्राणि-वध का सर्वथा परित्याग परते है।
भय और वैर से निवृत्त साधकको, जीवन के प्रति मोह-ममता रखनेवाले सब प्राणियों को सर्वत्र अपनी ही पान्मा के समान जानकर उनकी कभी भी हिंसा न करनी चाहिए ।
(१७) बुद्धिमान मनुष्य हो जीव-निकायों का सत्र प्रकार की युक्तियो से सन्यज्ञान प्राप्त करे और 'सवी जीव दुख से घबराते है-ऐमा जानकर उन्हें दुख न पहुंचाये।
ज्ञानी होने का सार ही यह है कि वह किसी भी प्राणी की हिंमा न परे । इतना ही हिंसा के सिद्धान्त का ज्ञान यधेट है। यही अहिंसाका विज्ञान है।