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अहिंसा-सूत्र
भगवान महावीर ने अठारह धर्ग-स्थानो में सबसे पहला स्थान अहिंसा का प्रतनाया है।
मत्र जीवो के साथ मयम से व्यवहार रखना अहिंसा है; वह सब सुखों को देनेवाली मानी गई हैं।
समार में जितने भी उस और स्थावर प्राणी है उन सब को, जान और अनजान में न स्वयं मारना चाहिए और न दूमरो से मरवाना चाहिए।
जो मनुष्य प्राणियों को स्वयं हिंसा करता है, दूसरों से हिंसा करवाता है और हिंसा करनेवालों का अनुमोदन करता है, वह संमार में अपने लिये वैर को बढ़ाता है।
(१४) मंमार में रहनेवाले बस और स्थावर जीवों पर,मन से, वचन से और शरीर से,-किसी भी तरह दंड का प्रयोग न करना चाहिए।